आपका स्वागत है कक्षा 9 अर्थशास्त्र के पहले अध्याय “पालमपुर गाँव की कहानी” में “Class 9 Economics Chapter 1 Notes Palampur gaav ki Kahani। यह अध्याय आपको पालमपुर गाँव की रोचक कहानी के माध्यम से वाणिज्यिकी के मूल सिद्धांतों का परिचय देगा। इस कहानी में हम गाँव की आर्थिक संरचना, बाजार, किसानों की भूमि और व्यापार आदि के बारे में जानेंगे। साथ ही, हम देखेंगे कि कैसे इन तत्वों ने पालमपुर गाँव के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस अध्याय में हम आपकोयह सिखाने का प्रयास करेंगे कि व्यापारिक गतिविधियों का कैसे प्रभाव पालमपुर गाँव और उसके लोगों पर पड़ता है। इस अध्याय में हमारा मुख्य ध्यान रहेगा पालमपुर गाँव की आर्थिक संरचना और लोगों के आर्थिक कार्यों पर। तो आईए पालमपुर गाँव की कहानी को अध्ययन करते हैं।

* पालमपुर गाँव का परिचय :-
पालमपुर गांव में कृषि उत्पादन प्रमुख गतिविधि है। इस गांव में 450 परिवार रहते हैं। इनमें से 150 परिवारों के पास खेती के लिए भूमि नहीं है। शेष 240 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से कम छोटे भूमि के टुकड़े हैं।
इस गांव की कुल जनसंख्या का एक तिहाई भाग दलित या अनुसूचित जातियों से है। इन लोगों के घर गांव के एक कोने में छोटे और मिट्टी और फूस से बने घर होते हैं।
इस गांव में अधिकांश भूमि के मालिक उच्च जाति के 80 परिवार हैं। उच्च जाति के लोगों के घर ईट और सीमेंट से बने होते हैं।
पालमपुर गांव में एक हाई स्कूल, दो प्राथमिक विद्यालय, एक स्वास्थ्य केंद्र और एक निजी अस्पताल भी हैं जो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं।
मुख्य उत्पादन गतिविधियाँ :-
कृषि उत्पादन की प्रमुख गतिविधाओं में सिर्फ 40% क्षेत्र में सिंचाई की जाती है। उच्च उत्पादक बीज (HYY) के उपयोग से गेहूं की उत्पादन क्षमता 1300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 3200 कीलोग्राम हो गई है।
• पालमपुर गांव में 25% लोग गैर कृषि कार्यों में लगे हुए हैं, जैसे कि डेयरी दुकानदारी, लघुउद्योग, परिवहन आदि। ये गैर कृषि कार्य अन्य उत्पादन गतिविधियों में शामिल हैं।
गैर कृषि क्रियाएँ :-
• अन्य उत्पादन गतिविधियों में जिन्हें गैर कृषि क्रियाएँ कहा गया है’ लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि शामिल हैं।
* उत्पादन :-
उत्पादन का उद्देश्य है कि हम ऐसी वस्तुएं और सेवाएं उत्पादन करें जो हमें आवश्यक होती हैं।उत्पादन का उद्देश्य है कि हम ऐसी वस्तुएं और सेवाएं उत्पादन करें जो हमें आवश्यक होती हैं।
* उत्पादन हेतु आवश्यक चीजे :-
वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन के लिए चार चीजें आवश्यक है :-
• भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन :- जल, वन, खनिज
• श्रम: जो लोग काम करते हैं, उनकी भी आवश्यकता होती है।
• भौतिक पूंजी :- इसमें स्थायी पूंजी (जैसे औजार, मशीन, भवन) और कार्यशील पूंजी (जैसे कच्चा माल, नकद पूंजी) शामिल होती है।
• ज्ञान एवं उघम मानव पूंजी
● पहली आवश्यकता है भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की जैसे जल, वन और खनिज।
● दूसरी आवश्यकता है श्रम, अर्थात काम करने वाले लोगों की।
● तीसरी आवश्यकता है
- भौतिक पूंजी: उत्पादन के समय उपयोग होने वाली चीजें हैं, जैसे इमारतें, मशीनें, औजार आदि। इनमें स्थायी पूंजी और कार्यशील पूंजी दोनों शामिल होती हैं।
- औज़ार, मशीन, भवन: औज़ार और मशीनों में आम औज़ार (जैसे किसान के हल से लेकर प्रगतिशील मशीनें जैसे जनरेटर, टरबाइन, कंप्यूटर आदि) शामिल होते हैं। औज़ार, मशीन और भवनों का उपयोग उत्पादन करने में कई वर्षों तक होता है और इसे स्थायी पूंजी कहा जाता है।
- कच्चा माल और नकद पैसा: उत्पादन में कई प्रकार के कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जैसे ‘बुनकर द्वारा प्रयोग किया जाने वाला सूत और कुम्हारों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली मिट्टी उत्पादन के दौरान भुगतान करने तथा आवश्यक सामग्री खरीदने के लिए कुछ पैसे की भी आवश्यकता होती है। कच्चा माल और नकद पैसा को कार्यशील पूंजी कहते हैं।
एक चौथी आवश्यकता है मानव पूंजी: उत्पाद करने के लिए भूमि, श्रम और भौतिक पूंजी को एक साथ मिलाने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता होती है, जिसे मानव पूंजी कहा जाता है।
- बाजार: बाजार भी एक आवश्यकता तत्व है, क्योंकि उत्पादित वस्तुओं को अंतिम उपभोग के लिए प्रतिस्पर्धा के लिए विक्रय किया जाता है।
* उत्पादन के कारक :-
• उत्पादन भूमि, श्रम और पूंजी को मिलाकर संगठित किया जाता है, जिन्हें उत्पादन के कारक कहा जाता है।
जमीन मापन की ईकाई:
● 1 हेक्टेयर = 10,000 वर्ग मीटर
* पालमपुर गाँव में कृषि :-
पालमपुर गाँव में कृषि: पालमपुर के लोगों का मुख्य पेशा कृषि उत्पादन है। यहां काम करने वाले लोगों में 75 प्रतिशत लोग अपने जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर है।
कृषि ऋतु को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है:
1. वर्षा ऋतु (खरीफ़):
– अवधि: जुलाई – अक्टूबर
– फसल: ज्वार, बाजरा, चावल, कपास, गन्ना, तम्बाकू, आदि।
2. शरद् ऋतु (रबी):
– अवधि: अक्टूबर – मार्च
– फसल: गेहूँ, सरसों, दालें, आलू, आदि।
3. ग्रीष्म ऋतु (जायद):
– अवधि: मार्च – जून
– फसल: तरबूज, खीरा, फलियाँ, सब्जियाँ, फूल, आदि।
बिजली के विस्तार ने सिंचाई व्यवस्था में सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप किसान दोनों खरीफ़ और रबी दोनों ऋतुओं में फसल उगाने में सफल हो सकते हैं।
बहुविध फसल प्रणाली:
एक ही भूमि के टुकड़े से उत्पादन बढ़ाने का तरीका है, जिसमें पालमपुर के किसान कम से कम दो मुख्य फसल उगाते हैं, तीसरी फसल के रूप में आलू पैदा कर रहे हैं। इस तरीके से किसान अपनी भूमि का बेहतर उपयोग करके उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं।
* खेती करने के तरीके :-
परम्परागत कृषि :-
परंपरागत कृषि में किसानों का उर्वरकों और बीजों के साथ बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसमें गाय के गोबर और अन्य प्राकृतिक खाद का प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक तरीके से उपजाते हल का उपयोग होता है और सिंचाई के लिए कुएं, नदियां, रहट और तालाबों का उपयोग किया जाता है। इस तरीके से किसान अपनी खेती में प्राकृतिक तत्वों का संयोजन करके प्रदर्शन को बढ़ा सकते हैं।।
* हरित क्रान्ति से भारतीय कृषि पर पड़े प्रभाव :-
हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को चावल और गेहूं की खेती के लिए ज्यादा उत्पादन देने वाले HYV (High-Yielding Variety) बीज का उपयोग करने के तरीके सिखाए।
• HYV बीजों की तुलना में परंपरागत बीजों से अधिक मात्रा में उत्पादन होने लगा।
• किसानों ने खेती में ट्रैक्टर और फसल काटने की मशीनों का उपयोग करना शुरू कर दिया।
• रसायनिक खादों का प्रयोग करना शुरू किया गया, जिससे उत्पादन में सुधार हुआ।
• प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया गया, जैसे सिंचाई के लिए नदियों, रहट, तालाबों का उपयोग किया गया।
इस प्रकार, हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को नए और विज्ञानिक तरीकों की सिख दी और उत्पादन में सुधार किया।
* हरित क्रान्ति से मृदा को ‘नुकसान :-
• रसायनिक उर्वरकों के कारण मिट्टी की उर्वरता कम हो गई, क्योंकि उर्वरक पानी में घुलकर मिट्टी से नीचे चले जाते हैं और जल को दूषित करते हैं।
• यह उर्वरक बैक्टीरिया और सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं, जो मिट्टी के लिए उपयोगी होते हैं, इसलिए अधिक उर्वरक प्रयोग करने से भूमि खेती के लिए अनुकूल नहीं रहती
• हरित क्रांति के कारण अनेक क्षेत्रों में उर्वरकों का अति प्रयोग हो गया, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता कम हो
• नलकूपों से सिंचाई करने के कारण भौम जल स्तर (भूमि जलस्तर) में कमी हो गई और प्रदूषण बढ़ गया।गई।।
* पालमपुर में भूमि का वितरण :-
• पालमपुर में 450 परिवारों में से लगभग एक तिहाई, अर्थात् 150 परिवारों के पास खेती के लिए भूमि नहीं हैं, और इनमें अधिकांशतः दलित परिवार हैं।
• 240 परिवारों के पास भूमि नहीं है, और वे 2 हेक्टेयर से भी कम क्षेत्रफल वाले टुकड़ों पर खेती करते हैं।
• 8 ऐसे टुकड़ों पर खेती करने से किसानों के परिवार को पर्याप्त आय नहीं होती।
• पालमपुर में 60 परिवार मझोले किसान और बड़े किसानों के हैं, जो 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती करते हैं।
• कुछ बड़े किसानों के पास 10 हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि है।
* पालम पुर गांव में भूमिहीन किसानों का संघर्ष :-
• भूमिहीन किसानों को रोजगार के लिए दैनिक मजदूरी करना पड़ रहा है।
• सरकार ने मजदूरों की दैनिक मजदूरी को न्यूनतम रूप में 60 रुपये निर्धारित किया है, लेकिन उन्हें केवल 35-40 रुपये ही मिलते हैं।
• खेतिहर श्रमिकों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण, ये लोग कम वेतन पर भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
• खेतिहर श्रमिक भारी कर्ज के कारण बहुत परेशानी झेल रहे हैं।
* पालमपुर के दुकानदार :-
• दुकान पर प्रतिदिन की वस्तुओं को थोक रेट पर खरीदते है और गाँव में बेचते है । पालमपुर में ज्यादा लोग व्यापार ( वस्तु विनियम ) नहीं करते
• गाँव में छोटे जनरल स्टोरो में चाल, गेहूँ चाय, तेल बिस्कुट साबुन, टूथ पेस्ट, बेट्री, मोमबत्ती, कापियां पैन पेनसिल तथा कुछ कपड़े भी बेचते हैं
कुछ परिवारों ने जिनके घर बस स्टैंड के निकट होते है अपने घर के एक भाग में ही छोटी दुकान खोल ली है ।
वस्तुओं के साथ- साथ खाने की चीजे भी बेचते हैं ।
* पालमपुर में गैर कृषि क्रियाएं कौन सी है?
• कृषि का मतलब होता है खेती करना, जबकि गैर-कृषि कार्यों का अर्थ होता है वे कार्य जिनमें खेती शामिल नहीं होती, जैसे दूध बेचना, खनन करना और हस्तशिल्प आदि।
• पालमपुर में केवल 25% कार्यशील जनसंख्या गैर-कृषि कार्यों में संलग्न है।
• पालमपुर में मुख्य गैर कृषि क्रियाएं में निम्नलिखित हैं:
• डेयरी: पालमपुर गांव के लोग भैंस पालते हैं और उनका दूध बड़े गांव रायगंज में संग्रहण और शीतलन केंद्र में बेचा जाता है।
• लघु स्तरीय विनिर्माण: पालमपुर में छोटे स्तर पर निर्माण कार्य किया जाता है और लगभग 50 लोग विनिर्माण कार्यों में लगे हुए हैं।
• कुटीर उद्योग: गांव में गन्ना पेरने वाली मशीनें स्थापित हैं। ये मशीनें बिजली से चलाई जाती हैं और किसान खुद गन्ना उगाते हैं तथा दूसरों से गन्ना खरीदकर गुड़ बनाते हैं, जिसे सहायपुर में व्यापारियों को बेचते हैं।
• व्यापार कार्य: पालमपुर के व्यापारी शहरों के थोक बाजारों से विभिन्न वस्तुएं खरीदते हैं और उन्हें गांव में बेचते हैं, जैसे चावल, गेहूं, चाय, तेल, साबुन आदि।
• परिवहन: पालमपुर के लोग विभिन्न वाहन चलाते हैं जैसे रिक्शा, जीप, ट्रैक्टर आदि। ये वाहन सामान और यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाते हैं और इन वाहनों के चालकों को किराए के रूप में पैसे मिलते हैं।
• प्रशिक्षण सेवा: पालमपुर गांव में एक कंप्यूटर केंद्र है जहां कंप्यूटर प्रशिक्षण दो कंप्यूटर डिग्री धारक महिलाओं के लिए उपलब्ध है। गांव के बहुत सारे छात्र वहां कंप्यूटर सीखने भी आते हैं।
इस प्रकार से पालमपुर गांव में लोग विभिन्न कारोबारिक गतिविधियों में लगे हुए हैं।
* पालमपुर में लघुस्तरीय विनिर्माण उद्योग की विशेषताएँ :-
• सरल उत्पादन विधियों का उपयोग करना।
• पारिवारिक श्रम द्वारा घरों में काम करना।
• कई बार श्रमिकों को किराए पर रखा जाता है।
• कम लागत में आरंभ करना।
• कम समय में उत्पादन पूरा करना।