कक्षा 10 की हिंदी विषय के कृतिका के अध्याय 1 मे आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1 प्रश्न उत्तर (Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Question Answer) दिए गए हैं जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

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प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर- हाँ, यह बात सच है कि बच्चे (लेखक) को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसका लालन-पालन नहीं करते थे और उनका व्यवहार भी दोस्तों जैसा होता था। परंतु संकट के समय उसे माँ की जरूरत थी, उसे अत्यधिक ममता और माँ की गोद की जरूरत थी। उसे पिता से ज्यादा अपनी माँ से कोमलता मिल सकती थी। इसी कारण संकट में बच्चे को माँ या नानी की याद आती है, परंतु बाप या नाना की याद नहीं। माँ का प्यार और स्नेह बच्चे के घाव को भरने का काम करता है।
प्रश्न 2. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर- बच्चा अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार उसकी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि रखता है। उसे बच्चों के साथ खेलना अच्छा लगता है। वह जो रुचि के साथ खेलता है, वह रुचि बड़ों के साथ नहीं होती। दूसरा कारण मनोविज्ञानिक भी है – बच्चे को अपने दोस्तों के बीच रोने या चिल्लाने का अनुभव होता है। इसलिए भोलानाथ अपने दोस्तों को देखकर रोना भूल जाता है।
प्रश्न 4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में कल्पना से अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे खेलने की स्वच्छंदता थी। बाहरी घटनाओं अपहरण आदि का भय नहीं था। खेल की सामग्रियाँ बच्चों द्वारा स्वयं निर्मित थीं। घर की अनुपयोगी वस्तु ही उनके खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी प्रकार ही हानि की संभावना नहीं थी। धूल-मिट्टी से खेलने में पूर्ण आनंद की अनुभूति होती थी। न कोई रोक, न कोई डर, न किसी का निर्देशन। जो था वह सब सामूहिक बुधि की उपज थी।
प्रश्न 5. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर-भोलनाथ जब अपने पिता की गोद में बैठे होते हैं, तब उन्हें अपना प्रतिबिम्ब आईने में देखकर बहुत खुशी होती रहती है। पिता को भी यह देखकर बहुत आनंद और गर्व होता है कि उनका बेटा उनकी तरह दिखता है। वे रामायण का पाठ करना छोड़कर देखते हैं और फिर मुस्कराते हुए और शर्माते हुए आईने के सामने खड़े हो जाते हैं। बच्चों की इस तरह की प्रतिबिम्ब विचारधारा बहुत प्यारी और मनोहर होती है और उनकी शर्माहट देखकर आईने के सामने खड़ा होना अद्भुत सुंदर लगता है।
बच्चे जब बारात के साथ दुल्हन को लेकर चलते हैं, और पिता द्वारा दुल्हन के घूंघट को उठाने पर सभी बच्चे उत्साहित होकर दौड़ जाते हैं, तो उनका सामाजिक भाव और रुझान साफ़ दिखता है। इसके साथ ही, उनका खेल में दिखने वाला मनोवैज्ञानिकता, नाटकीयता, और बचपन भी दिखता है।
बच्चे जब अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ते हैं, तो वे धीरे-धीरे हारते जाते हैं और उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती। परंतु उनके पिता इससे प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मूंछ खींचने पर बच्चे और पिता दोनों को बहुत आनंद आता है। यह बहुत ही खुशीदायक और मजेदार घटना होती है।
प्रश्न 6. इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर- आज की ग्रामीण संस्कृति और इस उपन्यास के अंश को देखकर ऐसा लगता है कि वह समूह-संस्कृति कितनी अच्छी थी, जो लोगों के बीच आत्मीय स्नेह और समूह में रहने की भावना जगाती थी। लेकिन आज के समय में ऐसे दृश्य नहीं दिखाई देते हैं। पुरुषों की सामूहिक कार्य प्रणाली भी समाप्त हो गई है। इसलिए ग्रामीण संस्कृति में हुए परिवर्तन के कारण वह दृश्य अब नहीं दिखाई देते हैं, जो तीस के दशक में थे।
आजकल घरों में लोग एकट्ठा हो गए हैं। घरों के सामने चबूतरों का अभाव हो गया है।
आजकल परिवारों में अकेली संस्कृति आ गई है, जिसके कारण समूह में बच्चों का प्रतिनिधित्व नहीं दिखता।
आजकल बच्चों के खेलने का तरीका और सामग्री बदल चुके हैं। खेल खर्चीले हो गए हैं। जो परिवार इतनी खर्च नहीं कर सकते, वे अपने बच्चों को समूह में जाने से रोकते हैं, ताकि उन्हें नीची भावना से बचाया जा सके।
आजकी नई संस्कृति चाहती है कि बच्चे धूल-मिट्टी से बचें।
घरों के बाहर पर्याप्त मैदान भी नहीं बचे हैं, लोग अपने घरों के डिब्बे जैसे रहने लगे हैं।
प्रश्न 8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य अक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- पिता अपने शिशु को नहलाते हैं, उसे साफ-सुथरा करके पूजा में बैठाते हैं। वह उसकी माथे पर तिलक लगाते हैं और फिर उसे कंधे पर बैठाकर गंगा तक ले जाते हैं। वापस आते समय, उन्हें पेड़ पर बैठाकर झूला झुलाने का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।
पिता के साथ कुश्ती लड़ना, बच्चे के गालों पर चुम्मा लेना, बच्चे द्वारा पकड़े जाने पर बनावटी से रोना रोने का नाटक करना और शिशु को हँसना बहुत मनोहारी लगता है।
माँ द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खाना खिलाना, उबटन करना, शिशु को सजाना और उसका रोना, बच्चों की टोली को देखकर रोना बंद करना, विभिन्न खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि अद्भुत दृश्य उत्पन्न किए जाते हैं। ये सभी दृश्य शैशव की यादें ताजगी भरते हैं।
प्रश्न 9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए ।
उत्तर- इस कहानी का नाम “माँ का आँचल” है। इस कहानी में हमें माँ के आँचल की महत्वपूर्णता को समझाने का प्रयास किया गया है। भोलानाथ को उसकी माता और पिता से बहुत प्यार मिलता है। उसका दिन पिता की संरक्षा में ही शुरू होता है। पिता हर उसकी खेल-कूद में साथ रहते हैं और जब कठिनाई होती है तो उसकी सहायता करते हैं। लेकिन जब उसे सांप देखकर डर लगता है, तो वह पिता की छांव की बजाय माँ के आँचल में छिपकर ही प्यार और शांति का अनुभव करता है। माता उसके भय से भयभीत होती है, उसके दुख से दुखी होती है, और उसके आंसू से दुखी होती है। वह अपने पुत्र की पीड़ा को देखकर अपनी सारी बुद्धि खो देती है। उसका यही प्रयास होता है कि वह अपने पुत्र की पीड़ा को समाप्त कर सके। माँ का यही प्रयास उसके बच्चे को आनंद और प्यार का अनुभव कराता है।
इसके लिए एक उपयुक्त शीर्षक हो सकता था “माँ की ममता” क्योंकि कहानी में माँ का प्यार ही मुख्य रूप से दिखाया गया
प्रश्न 10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर- शिशु की जिद में भी प्रेम का प्रकटीकरण होता है।
जब शिशु और माता-पिता के सामने होते हैं, तो यह समझना कठिन होता है कि माता-पिता का प्यार शिशु के लिए है या शिशु का माता-पिता के लिए। वास्तव में, दोनों ही प्यार एक ही भावना का प्रतिबिम्ब हैं।
शिशु अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए मुस्कान करते हैं, माता-पिता की गोद में जाने की इच्छा रखते हैं और उनके साथ खेलने के लिए उत्सुक होते हैं। माता-पिता की गोद में जाने की इच्छा उनका प्यार होता है। इस तरह, शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है क्योंकि यह उनके भावनाओं का प्रतिबिम्ब होता है।
प्रश्न 11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?
उत्तर- मेरा बचपन और यह पाठ में बताए गए बचपन बहुत अलग है। मेरे पिता मेरे लिए बहुत व्यस्त रहते हैं, वे अपने काम में लगे रहते हैं। रात को वे थक जाते हैं और जल्दी ही सो जाते हैं। वे मुझसे प्यार भरी बातें करते हैं और मेरे लिए मिठाई, चॉकलेट और खिलौने भी लाते हैं। कभी-कभी हम स्कूटर पर घूमने जाते हैं, लेकिन वे मेरे खेलों में इतना रुचि नहीं लेते। वे मुझे नंग धडंग रहने नहीं देते, वे बहुत पर्सनल हाइजीन का ध्यान रखते हैं। मेरे बचपन में “ए” का अर्थ एप्पल था और “सी” का अर्थ कैट था। हमने सभी को नमस्ते करना सीखा। मुझे दो और आधे साल की उम्र में स्कूल भेजा गया। तीन साल बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। अब मैं अपनी मैडम, स्कूल की ड्रेस और स्कूल के काम की चिंता करता हूँ। तब से लेकर आज तक मैं 90% अंक प्राप्त करने में लगा हुआ हूँ और अपनी मस्ती को छोड़कर पढ़ाई में ही व्यस्त रहता हूँ।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
प्रश्न 1. ‘माता का अँचल’ पाठ में भोलानाथ के पिता की दिनचर्या का वर्णन करते हुए आज के एक सामान्य व्यक्ति की दिनचर्या से उसकी तुलना कीजिए ।
उत्तर- माता का अँचल में बताया गया है कि भोलानाथ के पिता बहुत ध्यान रखते थे। वे सुबह जल्दी उठते थे और स्नान करके पूजा-पाठ करने बैठ जाते थे। वे अक्सर अपने बेटे भोलानाथ को भी साथ ले जाते थे। हर दिन वे रामायण का पाठ करते थे। पूजा के समय वे भोलानाथ को तिलक लगाते थे। पूजा-पाठ के बाद वे रामनामी बही पर हजार बार “राम-राम” लिखते थे और उसे अपने पाठ करने की पुस्तक में रख लेते थे। इसके बाद वे पाँच सौ बार कागज पर “राम-राम” लिखते और उन कागजों में आटे की छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर रखते थे। फिर वे उन गोलियों को लेकर गंगा नदी के तट पर जाते और अपने हाथों से मछलियों को खिलाते थे। इस समय भी भोलानाथ उनके साथ ही रहता था। आज के सामान्य आदमी की सुबह इस सुबह की दिनचर्या से अलग है क्योंकि आजकल लोग धन-दौलत के पीछे भाग रहे हैं और उनके पास इतना समय नहीं होता है।
प्रश्न 2. चिड़िया उड़ाते उड़ाते भोलानाथ और उसके साथियों ने चूहे के बिल में पानी डालना शुरू किया। इस घटना का के या परिणाम निकला?
उत्तर – खेल के बाद जब चिड़ियां उड़ गईं, भोलानाथ और उसके साथी चूहों के बिल में पानी डालने का विचार किया। सबने एक टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी डालना शुरू किया। पानी को नीचे से ऊपर उछालना था। हम सभी बहुत थक गए थे। तभी हमारी आशा के विपरीत, चूहों के बिल में साँप निकल आया। हम सभी बहुत डर गए और भागने लगे। हम सभी बिल्कुल पागलों की तरह दौड़ रहे थे। कुछ लोग गिर गए, कुछ लोग सीधे अपने सिर पर चोट लगा ली, कुछ लोगों के दाँत टूट गए। हम सब बिल्कुल भाग रहे थे। भोलानाथ की शरीर में लहू बह रहा था। उसके पैरों के तलवे में कई कांटे चुभ गए थे।
प्रश्न 3. ‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित समय में गाँवों की स्थिति और वर्तमान समय में गाँवों की स्थिति में आए परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पहले गांवों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। वहां बिजली, पानी, परिवहन जैसी सुविधाएं नहीं थीं, बल्कि उनके नाम तो थे, लेकिन वे काफी कम उपलब्ध थीं। लोगों की आजीविका का साधन कृषि था, यानी की वे कृषि कार्यों से ही अपनी रोजगार कमाते थे। लेकिन आज के दिनों में गांवों में टेलीविज़न के प्रचार-प्रसार के कारण लोगों में एकाकी प्रवृत्ति बढ़ गई है। बच्चे परंपरागत खेलों से विमुख होकर वीडियो गेम्स, टेलीविज़न और अन्य मनोरंजन के साथ अपना समय बिताना चाहते हैं। इस बढ़ती हुई आधुनिकता ने ग्रामीण संस्कृति को धीरे-धीरे अस्तित्वभंग की ओर ले जाया है।
प्रश्न 4. पिता भले ही बच्चे से कितना लगाव रखे पर माँ अपने हाथ से बच्चे को खिलाए बिना संतुष्ट नहीं होती है- ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भोलानाथ के पिता भोलानाथ को साथ रखते थे, उनके साथ घूमते-फिरते और गंगा जी ले जाते थे। वे उन्हें चौके में बिठाकर खिलाते थे। जब भोलानाथ का पेट भर जाता, तब उनकी माँ थोड़ा और खिलाने में हठ करती थी। वह बाबूजी से शिकायत करके कहती थी, “देखिए, मैं खिलाती हूँ। माँ के हाथ से खाने से बच्चों का पेट भरता है।” यह कहकर वह थाली में दही-भात मिलाती और अलग-अलग पक्षियों के बनावटी नाम लेकर भोजन को चिढ़ाती। वह भोजन खिलाते हुए कहती थी, “खालो नहीं तो ये पक्षी उड़ जाएंगे।” इस तरह भोजन जल्दी से भरपूर खाया जाता था।
प्रश्न 5. बच्चे रोना-धोना, पीड़ा, आपसी झगड़े ज्यादा देर तक अपने साथ नहीं रख सकते हैं। माता के अँचल’ पाठ के आधार पर बच्चों की स्वाभाविक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – बच्चे सच्चे होते हैं। वे आपसी लड़ाई, रोना-धोना, कष्ट की अनुभूति आदि को जल्दी भूल जाते हैं। वे आपस में फिर से मिल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। ‘माता का अँचल’ पाठ में बच्चों के सरल और निश्छल स्वभाव का पता चलता है। वे लड़ाई-झगड़े की कटुता को लंबे समय तक अपने मन में नहीं रख सकते हैं। खेल-खेल में रोना या हँसना उनके लिए सामान्य होता है। वे किसी को चिढ़ाने से भी नहीं चूकते हैं अपने मनोरंजन के लिए। सुख-दुख से उन्हें परवाह नहीं होती, वे अपनी दुनिया में खुश रहते हैं।
प्रश्न 6. मूसन तिवारी को बैजू ने चिढ़ाया था, पर उसकी सजा भोलानाथ को भुगतनी पड़ी, ‘माता का अँचल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- एक दिन भोलानाथ और उसके दोस्त बाग से वापस आ रहे थे, जब उन्हें मूसन तिवारी (गुरु जी) नजर आए। उनकी आँखें कमजोर थीं और वे अच्छे से देख नहीं पा रहे थे। उनके दोस्तों में से एक ढीठ बैजू ने उनको चिढ़ाते हुए कहा, “ओह, बुढ़वा बेईमान, तू माँगे करेला का चोखा।” इसके बाद गुरु जी को चिढ़ाने के चलते सभी बच्चे घर की ओर भागने लगे। गुरु जी उन बच्चों को पकड़ने के लिए उनके पीछे भागे, लेकिन वे बच्चे हाथ नहीं आए। तब गुरु जी ने निराश होकर पाठशाला की ओर चल दिए। पाठशाला से चार बच्चे भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए घर आ गए। शरारती बैजू और अन्य बच्चे भी वहीं चले गए, लेकिन भोलानाथ को गुरु जी के शिष्यों ने पकड़कर पाठशाला ले गए। उन बच्चों के कारण जिन्होंने गुरु जी को चिढ़ाया था, भोलानाथ को दंडित कर दिया गया।
प्रश्न 7 भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल में दावत की योजना किस तरह बना लेते थे?
उत्तर – भोलानाथ और उसके दोस्तों ने खेलते-खेलते एक योजना बना ली कि वे सभी खाना बनाने का प्रयास करेंगे। तब उन्होंने एक खास चूल्हा बनाने का निर्णय लिया, जो एक घड़े के मुँह की तरह था। उन्होंने दीपक के पात्र से कड़ाही और पूजा के लिए आचमनी की कलश बनायीं। उन्होंने पानी को घी बनाने के लिए, धूल को आटा बनाने के लिए और बालू को चीनी बनाने के लिए उपयोग किया। वे सभी मिलकर खाना बनाने के लिए पंगत में बैठ गए। उसी समय पंगत के अंत में बाबू जी भी आकर बैठ गए। जब बच्चे उन्हें देखते हैं, वे हँसते और खुशी से भाग जाते हैं।
प्रश्न 8. भोलानाथ और उसके साथी खेल- खेल में फ़सल कैसे उगाया करते थे?
उत्तर – खेलते-खेलते भोलानाथ और उसके दोस्त किसानी करने की योजना बनाते हैं। वे चबूतरे के छोर पर घिरी घिरनी को गाड़कर बाल्टी को कुआँ बना लेते हैं। एक पतली रस्सी से चुक्कड़ बाँधकर वे बाल्टी को कुएँ में लटका देते हैं। फिर दोनों लड़के बैलों की भाँति उसे मोटी खींचने लगते हैं। चबूतरा, खेत, कंकड़ और बीज तैयार होते हैं और वे खेती करते हैं। फसल जल्दी तैयार होती है और वे उसे पैरों से रौंदकर ओसाई में रख लेते हैं।
प्रश्न 9. भोलानाथ की माँ उसे किस तरह कन्हैया बना देती?
उत्तर – भोलानाथ जब अपने दोस्तों के साथ गली में खेल रहा होता था, उस समय भोलानाथ की माँ अचानक उसे पकड़ लेती और भोलानाथ के बहुत सारे नाटक करने पर भी कड़वा तेल सिर पर लगाकर सबको सराबोर कर देती थी। उसकी नाभि और लालटेन पर काजल की बिंदी लगा देती थी। बालों में चोटी गूँथकर उसमें फूलदार लट्टू बाँधती और रंगीन कुर्ता-टोपी पहनाकर ‘कन्हैया’ बना देती थी।
मूल्यपरक प्रश्न
प्रश्न 1 आर्जकल बच्चे घरों में अकेले खेलते हैं, पर भोलानाथ और उसके साथी मिल- जुलकर खेलते थे। इनमें से आप भावी जीवन के लिए किसे उपयुक्त मानते हैं और क्यों?
उत्तर- हाँ, यह सत्य है कि आजकल के बच्चे अकेले समय कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं, वीडियो गेम खेलते हैं और टेलीविज़न पर कार्टून देखते हैं। परंतु पुराने समय में भोलानाथ जैसे बच्चे समय अपने साथियों के साथ खेलते थे। वे खेत में चिड़ियाँ उड़ाते थे, चूहे के बिल में पानी डालते थे, खेती करते थे और बारात निकालते थे। ये खेल ऐसे थे जिनमें बच्चों को साथ में खेलने की आवश्यकता होती थी। मैं मिलजुलकर खेलने को भावी जीवन के लिए उपयुक्त मानता हूँ, क्योंकि-
इससे हमारी सामूहिकता की भावना मजबूत होती है।
इस प्रकार के खेलों से हमारी मदद करने की भावना विकसित होती है।
मिलकर खेलने से हम सब अपना-अपना योगदान देते हैं, जिससे हमें सक्रियता की भावना होती है।
मिलकर खेलने से बच्चों में हार-जीत को समान रूप से स्वीकारने की प्रेरणा मिलती है और यह उनके भविष्य में बहुत महत्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 2. भोलानाथ के पिता भोलानाथ को पूजा-पाठ में शामिल करते, उसे गंगा तट पर ले जाते तथा लौटते हुए पेड़ की डाल पर झुलाते। उनका ऐसा करना किन-किन मूल्यों को उभारने में सहायक है?
उत्तर- भोलानाथ अपने पिता के साथ पूजा करते हैं और इसके बाद वे आटे की गोलियाँ लेकर गंगातट जाते हैं। वहां पर वे मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाते हैं और फिर पेड़ की झुकी डाल पर भी उसे झूलाते हैं। भोलानाथ के इस कार्यव्यवहार से उनमें कई मानवीय मूल्यों का उदय और विकास होगा। यहां नीचे कुछ मानवीय मूल्यों की व्याख्या है:
1. भोलानाथ अपने पिता के साथ पूजा-पाठ में शामिल होने से उनमें धार्मिक भावना का उदय होगा।
2. प्रकृति से संबंध बनाने के लिए प्रकृति के साथ समय बिताना आवश्यक होता है। भोलानाथ को अपने पिता के साथ प्रकृति के पास जाने का अवसर मिलता है। इसलिए, उनमें प्रकृति के प्रति आस्था का विकास होगा।
3. मछलियों को नजदीक से देखकर और उन्हें आटे की गोलियाँ खिलाकर भोलानाथ में जीव-जन्तुओं के प्रति संवेदनशीलता और दया का विकास होगा।
4. नदियों के किनारे जाने से भोलानाथ के मन में नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने की भावना का उदय और विकास होगा।
5. वृक्षों के पास जाने और उनकी शाखाओं पर झूले झूलने से भोलानाथ में पेड़ों के संरक्षण की भावना विकसित होगी।
प्रश्न 3. वर्तमान समय में संतान द्वारा माँ-बाप के प्रति उपेक्षा का भाव दर्शाया जाने लगा है जिससे वृद्धों की समस्याएँ बढ़ी हैं तथा समाज में वृद्धाश्रमों की जरूरत बढ़ गई है। माता का अँचल’ पाठ उन मूल्यों को उभारने में कितना सहायक है जिससे इस समस्या पर नियंत्रण करने में मदद मिलती हो।
उत्तर- आजकल भौतिकवाद का प्रभाव बहुत ज्यादा हो रहा है। लोग ज्यादा से ज्यादा धन कमाने और सुख प्राप्त करने की चाहत में हैं, इसलिए वे मशीनों की सहायता से अपना काम आसान बना लेते हैं। ऐसे में, माता-पिता के पास अपने बच्चे के लिए समय नहीं रहता है। उन्हें बैठने, खेलने और घूमने के लिए बच्चे के साथ समय नहीं दे पाते हैं। इसके कारण, एक ओर माता-पिता बुढ़ापे में उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं और दूसरी ओर वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है।
पाठ “माता का अंचल” में भोलानाथ अपने पिता के साथ अधिकांश समय बिताता था। वह अपने पिता के साथ पूजा में भी शामिल होता था और पिता जी भी उसके साथ खेलों में खुशी-खुशी शामिल होते थे। इससे भोलानाथ में अपने माता-पिता के प्रति बहुत गहरा लगाव हुआ, उनके साथ रहने की भावना बढ़ी, माता-पिता के प्रति उत्साह और मिलन-जुलन की भावना विकसित हुई। इससे माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व की भावना में व्यापकता और सामाजिक सरोकारों में गहराहट आई। इससे वृद्धों की उपेक्षा और वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई आवश्यकता को रोकने में मदद मिलेगी।