कक्षा 10 के हिंदी विषय की कृतिका के अध्याय 1 माता का आंचल में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 हिंदी कृतिका अध्याय 1: माता का अंचल (Class 10 Hindi Kritika Chapter 1) दिया गया है जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

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माता का अँचल
लेखक – शिवपूजन सहाय
सारांश
“माता का आँचल” पाठ शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में लेखक ने माँ के साथ अद्भुत लगाव को व्यक्त किया है और ग्राम संस्कृति का वर्णन किया है।
कथाकार का नाम तारकेश्वर था। उनके पिताजी उन्हें सुलाते, सुबह उठाते और नहलाते थे। पूजा के समय वे उन्हें अपने पास बिठाकर शंकर जी की तरह तिलक लगाते थे, जो लेखक को खुशी देता था। पूजा के बाद पिताजी उन्हें कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने ले जाते थे और रामनाम लिखी पर्चियों में लिपटे आटे के गोलियाँ गंगा में डालकर लौटते समय वे उन्हें रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झूलाते थे। घर लौटकर बाबूजी उन्हें चौके पर बिठाकर अपने हाथों से खाना खिलाते थे। अगर मना करते तो उनकी माँ बड़े प्यार से तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर आदि बनावटी नाम से टुकड़े बनाकर उन्हें खिलाती थीं।
खाने के बाद जब लड़का बाहर जाने की तैयारी कर रहा था, तभी माँ उसे पकड़ लेतीं। उसने रोते हुए भी बालों में तेल लगाकर कंघी की मदद से बाल बनवा दिए। वह अपने कपड़ों और टोपी पहनकर चोटी गूँथकर फूलदार लट्टू बांध देतीं थीं। रोते-रोते लड़का अपने बाबूजी की गोद में बाहर आता था। जैसे ही वे बाहर आते, वे बच्चों के साथ मस्ती में डूब जाते थे। वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक करते थे और मिठाई की दुकान चलाते थे। खेल के दौरान, जब खाने वालों की पंक्ति में वे चुपके से बैठ जाते, तब लोगों को खाना पहुंचाया जाता। लोग जब खाने से पहले ही उठा दिए जाते, तो वे पूछते कि भोजन फिर कब मिलेगा। जब वे दूल्हे की पालकी देखते, तो वे जोर-जोर से चिल्लाते थे।
एक बार रास्ते में आते हुए लड़कों की टोली ने मूसन तिवारी को बूढ़ा और बेईमान कहकर चिढ़ा दिया। तो मूसन तिवारी ने उनके साथ मुकाबला करते हुए उन्हें जवाब दिया। जब वे लोग भाग गए, तब मूसन तिवारी पाठशाला में पहुंच गए। अध्यापक ने लेखक को काफी मार पिटाई की। इस खबर को सुनकर पिताजी तुरंत पाठशाला की ओर दौड़ते आए। वे अध्यापक से विनती करके पिताजी उन्हें घर ले गए, जहां वे रोने-धोने को भूलकर अपने मित्र मंडली के साथ समय बिताने चले गए।
मित्र मंडली के साथ मिलकर लेखक खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश करने लगे। चिड़ियों की उड़ जाने पर, जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में वह आसपास का भरा पानी डाला, तो वहां से एक साँप निकल आया। डर से मचलते हुए लेखक लहूलुहान हो गए। जब वे घर पहुंचे, तो पिताजी उनके सामने बैठे थे, लेकिन बावजूद उनके साथ ज्यादा समय बिताने के, लेखक ने अंदर जाकर माँ से लिपट कर आराम किया। माँ ने घबराते हुए अपने आँचल से उनकी धूल साफ की और हल्दी लगाई।