कक्षा 10 के भूगोल के अध्याय 5 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 भूगोल अध्याय 5: खनिज तथा ऊर्जा संसाधन नोट्स (Class 10 Geography Chapter Chapter 5 Notes) दिए गए हैं जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए रामबाण साबित होंगे।

Class 10 Geography Chapter Chapter 5 Notes
खनिज़
खनिजों का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। वे सभी वस्तुएं बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। खनिजों के बिना हम अपने आसपास के चीजों को नहीं बना सकते। खनिजों में एक प्रकार का कार्बनिक पदार्थ होता है, जिसमें कठोरता, रंग और निश्चित आकार होता है।
अयस्क
अयस्क एक मिश्रण होता है जिसमें खनिजों के अंश, जैसे कि लोहा, मैंगनीज़ और अभ्रक शामिल होते हैं। ये खनिजों के अंश प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं, जो विभिन्न अशुद्धियों के साथ मिलते हैं।
खनिजों का हमारे लिए महत्व
खनिजों का हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व होता है। हम छोटी-छोटी चीजों से लेकर बड़ी चीजों तक, जैसे कि सुई और जहाज, खनिजों से बनाते हैं। इमारतें और पुल भी खनिजों से बनाए जाते हैं। खनिजों का उपयोग हमारे भोजन में भी होता है। मशीनें और उपकरण भी खनिजों से बनाए जाते हैं। परिवहन साधन, बर्तन और इसके अलावा भी अन्य बहुत सारी चीजें भी खनिजों से ही बनाई जाती हैं।
खनिजों के प्राप्ति स्थल
• आग्नेय तथा कायांतरित से (जस्ता, तांबा, जिंक, सीसा) – जस्ता, तांबा, जिंक, और सीसा उपयोग में लाये जाने वाले धातुओं से।
• अवसादी चट्टानों की परतों में (कोयला, पोटाश, सोडियम नमक) – कोयला, पोटाश, और सोडियम नमक द्वारा बनी अवसादी चट्टानों की परतों में।
• धरातलीय चट्टानों से अपघटन से – भूमिकंटकीय चट्टानों से होने वाली उपद्रवों से।
• जलोढ़ जमाव या प्लेसर निक्षेप के रूप में (सोना, चाँदी, टिन, प्लैटिनम) – सोना, चाँदी, टिन, और प्लैटिनम के रूप में जलोढ़ जमाव या प्लेसर निक्षेप होने के रूप में।
• महासागरीय जल (नमक, मैग्नीशियम, ब्रोमाइन) – समुद्री जल में पाए जाने वाले तत्वों में नमक, मैग्नीशियम और ब्रोमाइन हैं।
आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिजों का निर्माण:-
आग्नेय और कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारें, जोड़, भ्रंश और विदर मिलते हैं। ये दरारें छोटे टुकड़ों की तरह शिराओं में और बड़े टुकड़ों की तरह परतों पर पाए जाते हैं। जब ये दरारें तरल या गैसीय अवस्था में दबाव के कारण भूमि की ओर धकेले जाते हैं, तो ये ठंडे हो जाते हैं और जम जाते हैं।
इसके मुख्य उदाहरण जस्ता, तांबा, जिंक और सीसा जैसे महत्वपूर्ण धात्विक खनिज हैं।
भूगर्भशास्त्री:- भूगर्भशास्त्री वे वैज्ञानिक होते हैं जो चट्टानों की प्रकृति और उनके निर्माण का अध्ययन करते हैं।
खनन:- खनन एक प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी के गर्भ से धातु, खाद्यान और अन्य उपयोगी खनिजों को निकाला जाता है।
खनिजो के वर्गीकरण का आधार
खनिजों का वर्गीकरण उनके रंग, चमक, कठोरता, घनत्व तथा क्रिस्टल के आधार पर किया जाता है।
खनिज के प्रकार
खनिज 3 प्रकार के होते हैं।
• धात्विक
• अधात्विक
• ऊर्जा खनिज
धात्विक खनिज वे खनिज होते हैं जिनमें धातु का अधिकांश तत्व होता है। इसके तीन प्रकार होते हैं।
1. लौह: इसमें लोहे का अंश होता है। उदाहरण के रूप में लौह अयस्क, मैग्नीज, निकल, कोबाल्ट आदि खनिज शामिल होते हैं।
2. अलौह: इसमें लोहे का अंश नहीं होता है। उदाहरण के रूप में तांबा, सीसा, जस्ता, बॉक्साइट आदि खनिज शामिल होते हैं।
3. बहुमूल्य खनिज: ये खनिज सोना, चांदी, प्लैटिनम आदि होते हैं जिनकी मूल्यता अत्यंत उच्च होती है।
लोह खनिज
लौह अंश वाले खनिजों में जैसे कि लोहा और मैंगनीज़, ये खनिज बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
लौह अयस्क: लोहे का एक मुख्य स्रोत है जो उद्योगिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। भारत में लौह अयस्क की बड़ी मात्रा मौजूद है। हमारे देश में लोहे के साथ अयस्क अधिक मिश्रित होते हैं।
मैग्नेटाइट: यह एक उच्च गुणवत्ता वाला लोहा अयस्क होता है, जिसमें 70 प्रतिशत लोहा होता है। इसमें शक्तिशाली चुंबकीय गुण होते हैं और यह विद्युत उद्योगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होता है।
हेमेटाइट: यह लोहे का बहुत महत्वपूर्ण खनिज है, जिसका 50-60 प्रतिशत लोहा होता है। यह उद्योगों में अधिक प्रयोग होता है।
● भारत में लौह अयस्क की पेटिया
• उड़ीसा :- झारखण्ड पेटी
• महाराष्ट्रः- गोआ पेटी
• बेलारी:- चित्रदुर्ग, चिकमंगलूर – तुमकुर पेटी
• दुर्ग:- बस्तर – चन्द्रपुर पेटी
मैंगनीज
मैंगनीज़ आमतौर पर इस्पात बनाने में इस्तेमाल होता है।
एक टन इस्पात बनाने के लिए लगभग 10 किलोग्राम मैंगनीज़ की आवश्यकता होती है।
मैंगनीज़ का उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाओं और पेंट बनाने में किया जाता है।
अलौह खनिज
ये खनिज उनमें शामिल नहीं होते हैं जिनमें लोहा होता है, हालांकि इनमें तांबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना शामिल होते हैं।
इन खनिजों का महत्वपूर्ण योगदान धातु शोधन, इंजीनियरिंग और विद्युत उद्योगों में होता है।
लौह और अलौह खनिज में अन्तर
तांबा
तांबे का उपयोग प्रमुखतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है क्योंकि यह घातवर्ध्यता, तन्यता और ताप संचालकता के कारण मशहूर है।
मध्य प्रदेश के बालाघाट खदानों में देश का लगभग 52 प्रतिशत तांबा उत्पन्न होता है।
बॉक्साइट
बॉक्साइट निक्षेपों का उत्पादन विभिन्न चट्टानों के विघटन से होता है, जो अल्यूमिनियम सिलिकेट से समृद्ध होती हैं।
एल्यूमिनियम धातु महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी शक्ति लोहे के बराबर होती है और यह बहुत हल्की और चालक भी होती है। इसके साथ ही, यह बहुत आसानी से मोड़ी जा सकती है।
भारत में बॉक्साइट का मुख्य उत्पादन मुख्य रूप से अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियां और बिलासपुर कटनी के पठार में होता है।
अधात्विक खनिज
+ वे खनिज जिनमें धातु का अंश नहीं होता है।
+ जैसे:- अभ्रक, नमक, पोटाश, चूना पत्थर, संगमरमर, बलुआ पत्थर आदि ।
अभ्रक
• अभ्रक पत्थरों को बादलों की तरह देखा जाता है।
• अभ्रक की मुख्य खानें:
– छोटा नागपुर पठार के उत्तरी किनारों पर।
– बिहार और झारखंड के कोडरमा और गया।
– हजारीबाग पेटी।
– राजस्थान में अजमेर के पास।
– आंध्र प्रदेश की नेल्लोर पेटी।
• अभ्रक को विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों में उपयोग किया जाता है।
चूना पत्थर
• चूना पत्थर को कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट और मैगनीशियम कार्बोनेट से बनाया जाता है।
• यह अधिकांशतः उदासीन चट्टानों में पाया जाता है।
• चूना पत्थर सीमेंट उद्योग के लिए मुख्यतः उपयोग होता है।
• इसका उपयोग लौह प्रगलन की भट्टियों में आवश्यक होता है।
खनन उद्योग को घातक उद्योग क्यों कहा जाता है?
यह उद्योग श्रमिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है।
• यहाँ काम करते समय धूल और हानिकारक धुएँ बनते हैं, जिसके कारण श्रमिकों को सांस लेने में मुश्किल होती है और उन्हें फेफड़ों से जुड़ी बीमारियाँ हो सकती हैं।
• खदानों में जब पानी भर जाता है या आग लगती है, तो श्रमिकों को डर लगता है।
• कई बार खदानों की छत गिर जाती है और इससे श्रमिकों को अपनी जान खोने का खतरा रहता है।
• खनन के कारण नदियों का पानी प्रदूषित हो जाता है।
• इसके साथ ही, खनन के कारण भूमि और मिट्टी का अपक्षय होता है।
खनिज संसाधनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
खनिज संसाधनों का संरक्षण आवश्यक हैं क्योंकि:-
खनिज सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्हीं से हमारे उद्योग और कृषि की आवश्यकताएं पूरी होती हैं।
लेकिन खनिजों का नवीकरण करना बहुत मुश्किल होता है। उनकी मात्रा भी काफी कम होती है। खनिजों के निर्माण में लाखों वर्ष लग जाते हैं।
हम खनिजों का उपयोग बहुत तेजी से कर रहे हैं, जो समय के साथ कम हो जाएगा। इसलिए हमें खनिजों को आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित रखना चाहिए।
खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय
• खनन और परिष्करण के दौरान हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम इन पदार्थों को कम से कम बर्बाद करें।
• हमें जहाँ भी संभव हो, प्लास्टिक (सत्यापित) और लकड़ी का उपयोग करना चाहिए।
• खनन और खनिज सुधार प्रक्रिया में हमें धातु बनने तक कम से कम व्यर्थ खपत करनी चाहिए।
• हमें पुराने और अवशिष्ट माल को पुनः उपयोग करना चाहिए।
• हमें खनिजों का योजनाबद्ध तरीके से पुनः चक्रण और पुनः उपयोग करना चाहिए।
• इन पदार्थों का नियमित और सतत पोषणीय तरीके से उपयोग करना चाहिए।
• हमें पर्यावरण के ध्यान में खनिजों के अन्य विकल्प ढूंढने चाहिए, जैसे सी. एन. जी.
ऊर्जा संसाधन
• खाना पकाने, रोशनी और ताप के लिए, गाड़ियों और उद्योगों में मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है।
• ऊर्जा ईंधन खनिजों से उत्पादित की जाती है, जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम और विद्युत से।
• ऊर्जा संसाधनों को पारंपरिक और गैर पारंपरिक स्रोतों में विभाजित किया जा सकता है।
परंपरागत ऊर्जा के स्रोत:-, लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत ( दोनों जल विद्युत व ताप विद्युत) ।
गैर परंपरागत ऊर्जा के स्रोत:- सौर, पवन, ज्वारीय, भू – तापीय, बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल है।
परंपरागत ऊर्जा के स्रोत
कोयला
कोयला भारत में एक महत्वपूर्ण जीवाश्म ईंधन है, जो बहुतायात में पाया जाता है। यह देश की ऊर्जा की आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। कोयले का उपयोग ऊर्जा उत्पादन, उद्योगों और घरेलू ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मुख्यतः कोयले पर निर्भर है। कोयले की संपीड़न की मात्रा, गहराई और समय के अनुसार इसे तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।
एंथ्रासाइट कोयला: यह कोयला सबसे गुणवान होता है और कठोरता में उच्च होता है।
लिग्नाइट: यह एक कम गुणवान, भूरे रंग का कोयला होता है। यह मुलायम होता है और अधिक नमीयुक्त होता है। लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में उपयोग किए जाते हैं।
बिटुमिनस कोयला: इसे गहराई में दबाए जाने और अधिक तापमान से प्रभावित कोयले कहा जाता है। वाणिज्यिक प्रयोग में यह सबसे लोकप्रिय है। उच्च गुणवत्ता वाले बिटुमिनस कोयले का उपयोग धातुशोधन में किया जाता है, जिसमें इसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्व होता है।
भारत में कोयला
भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है। एक उन्हें गोंडवाना कोयला कहा जाता है, जिसकी आयु 200 लाख से कुछ अधिक वर्ष है। दूसरा वरशिरी निक्षेप नामक कोयला है, जिसकी आयु लगभग 55 लाख वर्ष पुरानी है।
गोंडवाना कोयला धातुशोधन कोयला होता है और इसके मुख्य संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल और झारखंड), झरिया, रानीगंज, और बोकारो में स्थित हैं। ये स्थान महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं। गोदावरी, महानदी, सोन, और वर्धा नदी के किनारे भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों में मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश, और नागालैंड में पाया जाता है।
पेट्रोलियम
भारत में कोयले के बाद ऊर्जा का दूसरा मुख्य स्रोत पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप और प्रकाश के लिए उपयोग होता है, मशीनों को चिकना बनाने के लिए इस्तेमाल होता है, और विभिन्न उद्योगों के लिए खाद्य पदार्थ के रूप में भी प्रयोग होता है।
तेल शोधन इकाइयाँ एक विशेष काम करती हैं जैसे संयुक्त वस्त्र, उर्वरक और अनेक रासायनिक उद्योगों में।
भारत में पेट्रोलियम का 63% मुम्बई समुद्रतल से निकलता है, 18% गुजरात से और 13% असम से आता है।
प्राकृतिक गैस
इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रसायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
कार्बनडाई ऑक्साइड कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। इसलिए, इसे वर्तमान समय की ऊर्जा स्रोत के रूप में माना जाता है।
कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन में विशाल प्राकृतिक गैस के भंडार खोजे गए हैं।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जहाँ विशाल प्राकृतिक गैस के भंडार पाए जाते हैं।
विद्युत
विद्युत मुख्यतः दो तरीकों से उत्पन्न होती है।
(क) पहला तरीका है प्रवाही जल का उपयोग करके हाइड्रो-टरबाइन चलाने द्वारा जल विद्युत उत्पन्न करना।
(ख) दूसरा तरीका है अन्य ईंधनों जैसे कि कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को जलाकर टरबाइन चलाकर तापीय विद्युत उत्पन्न करना।
बहुत तेज बहने वाले जल से जल विद्युत उत्पन्न होती है, जो एक पुनर्जीवित करने योग्य स्रोत है।
भारत में कई सर्वाधिक उद्देश्यवान परियोजनाएं हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं, जैसे कि भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइड्रोलेक्ट्रिक परियोजना।
ताप विद्युत
ताप विद्युत उत्पन्न करने के लिए हम तीन प्रमुख स्रोतों का उपयोग करते हैं: कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस। इनमें से कोयला, पेट्रोलियम और गैस का उपयोग करके विद्युत बनाई जाती है।
तापीय और जल विद्युत ऊर्जा में अन्तर
गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन
परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा
परमाणु या आणविक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए, हम परमाणु या आणविक एणर्जी की संरचना में परिवर्तन करते हैं। इस परिवर्तन के दौरान, बहुत सी ऊर्जा रिहाई के रूप में उष्मा के रूप में छोड़ दी जाती है। इस उष्मा का उपयोग विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए किया जाता है।
यूरेनियम और थोरियम, जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, को परमाणु या आणविक ऊर्जा के उत्पादन में उपयोग किया जाता है।
केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।
आणविक शक्ति :– अणु के विखंडन से प्राप्त ऊर्जा
आणविक खनिज :- परमाणु ऊर्जा को धारण करने वाले पदार्थ जैसे यूरेनियम, थोरियम तथा बेरिलियम ।
भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य उज्ज्वल है, क्यों?
• भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है, जिसका मतलब है कि यहां गर्मी बहुत ज्यादा होती है और इसका असर धरती पर होने वाले बदलावों पर पड़ता है।
• इसके पास प्रदूषण रहित ऊर्जा संसाधन हैं, जिनका उपयोग करके हम सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
• यह नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत भी है, जिसका मतलब है कि हम इसे अपनी आवश्यकताओं के लिए बदल सकते हैं और इससे अधिक ऊर्जा उत्पादन कर सकते हैं
• इस तरह के ऊर्जा स्रोत से निम्नवर्ग के लोग आसानी से लाभ उठा सकते हैं।
• इसके अलावा, यह हमारे वातावरण को भी सुरक्षित रखने में मदद करता है।
पवन ऊर्जा
भारत में पवन ऊर्जा के बड़े पेटी तमिलनाडु के नागरकोइल से मदुरई तक स्थित हैं। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप में भी महत्वपूर्ण पवन ऊर्जा के प्लांट हैं।
नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी उपयोग के लिए प्रसिद्ध हैं।
बायोगैस एक ऊर्जा है जो घास, खेती के अपशिष्ट, जानवरों और मानव स्रोतों से प्राप्त की जाती है।
ज्वारीय ऊर्जा
जलवायु ऊर्जा से बनी लहरों का विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है।
ज्वारीय ऊर्जा के उतपन्न की प्रक्रिया:-
ज्वारीय ऊर्जा की उत्पत्ति का प्रक्रिया इस प्रकार होती है:
- बाढ़ द्वार बनाकर सँकी खाड़ी में पानी को रोका जाता है। जब उच्च ज्वार होता है, तो पानी इस सँकी खाड़ी से अंदर भरता है और जब द्वार बंद हो जाता है, तो पानी बाँध में ही रहता है।
- जब बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरता है, तो पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की ओर ले जाया जाता है जहां यह ऊर्जा उत्पादक टरबाइन को चलाने के लिए उपयोग होता है।
- भारत में ज्वारीय ऊर्जा को उत्पन्न करने के लिए आदर्श स्थानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- खम्भात की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी: गुजरात में स्थित ये जलाशय ज्वारीय तरंगों के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए आदर्श हैं।
- पश्चिमी तट, गंगा डेल्टा और सुंदर वन क्षेत्र: पश्चिम बंगाल में स्थित ये क्षेत्र भी ज्वारीय ऊर्जा के उत्पादन के लिए आदर्श हैं।
भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा की उत्पत्ति होती है जब हम पृथ्वी के आंतरिक भागों से आने वाली गर्मी का उपयोग करते हैं और उसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
ऊर्जा का संरक्षण
- जब जरूरत ना हो, हमें बिजली को बंद कर देना चाहिए।
- हमें सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना चाहिए।
- परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की संख्या सीमित होती है। हमें इनका उपयोग सतर्कता के साथ करना चाहिए।
- हमें नवीनीकरणीय साधनों का उपयोग करना चाहिए।
- हमें विद्युत बचाने वाले उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।
- हमें कार-पूलिंग करना चाहिए।