कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 3: मुद्रा और साख । Class 10 Economics Chapter 3 Notes in Hindi pdf

कक्षा 10 के अर्थशास्त्र के अध्याय 3 मुद्रा और साख में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 3: मुद्रा और साख (Class 10 Economics Chapter 3 Notes) दिए गए हैं जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए रामबाण साबित होंगे।  

कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 3: मुद्रा और साख । Class 10 Economics Chapter 3 Notes in Hindi pdf

Class 10 Economics Chapter 3 Notes

मुद्रा 

मुद्रा वह पैसा या धन की एक रूपरेखा होती है जिसका उपयोग हम रोजमर्रा की जिंदगी में खरीद-फरोख्त के लिए करते हैं। इसमें सिक्के और कागज़ के नोट शामिल होते हैं जो हम इस्तेमाल करते हैं। आमतौर पर, किसी देश में उपयोग होने वाली मुद्रा उस देश की सरकार द्वारा निर्मित की जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में रुपया और पैसा मुद्रा हैं।

हम मुद्रा के बारे में उसके कार्यों के आधार पर बात कर सकते हैं। आमतौर पर, मुद्रा के कार्य में विनिमय का माध्यम, मूल्य की माप, धन का संचय और स्थगित भुगतानों के मान शामिल होते हैं। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की परिभाषा उसके कार्यों के आधार पर दी है। मुद्रा की मुख्य विशेषता यह है कि वह सामान्य गुणों को होना चाहिए। अगर किसी वस्तु में सामान्यता नहीं है, तो उसे मुद्रा नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार, मुद्रा वह वस्तु है जो सामान्य रूप से व्यापार, मूल्य की माप, धन का संचय और ऋण के भुगतान के रूप में स्वीकार की जा सकती है।

मुद्रा के प्राथमिक कार्य

मुद्रा का उपयोग उन सभी प्राथमिक कार्यों में किया जाता है जो हर देश में हर समय मुद्रा के माध्यम से होते हैं। इसमें केवल दो कार्यों को शामिल किया जाता है। 

विनिमय का माध्यम

विनिमय का माध्यम अर्थात् मुद्रा के माध्यम से होने वाला विनिमय कार्य इसका मतलब होता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है और उसके स्थान पर दूसरी वस्तुएं खरीदता है। मुद्रा के माध्यम से क्रय और विक्रय दोनों काफी सरल हो जाते हैं। जबसे मुद्रा का उपयोग विनिमय के माध्यम से होने लगा है, तबसे मनुष्य की समय और शक्ति में काफी बचत हुई है। मुद्रा को सामान्यतः स्वीकृति मिली हुई है, इसलिए मुद्रा के माध्यम से विनिमय कार्य सरल हो जाते हैं।

मूल्य का मापक

मुद्रा द्वारा हम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को माप सकते हैं। काफी समय पहले, जब वस्तुओं का विनिमय प्रणाली मौजूद थी, तब मूल्यों को मापना काफी कठिन था। लेकिन आजकल हम मुद्रा का उपयोग करके वस्तुओं और सेवाओं की मूल्यांकन में कोई कठिनाई नहीं होती है, क्योंकि हम मुद्रा को मूल्यों के मापदंड के रूप में उपयोग करते हैं। व्यापारिक कंपनियां अपनी लाभ, लागत, हानि, कुल आय आदि का आसानी से अनुमान लगा सकती हैं। मुद्रा की मदद से हम किसी देश की राष्ट्रीय आय प्रति व्यक्ति की आय की गणना कर सकते हैं और भविष्य के लिए योजनाएं बना सकते हैं।

गौण कार्य

गौण कार्य वे कार्य होते हैं जो प्राथमिक कार्यों का सहायक होते हैं। जब अर्थव्यवस्था विकसित होती है, तो सहायक कार्यों का महत्व बढ़ता है। सहायक कार्यों में निम्नलिखित कार्य शामिल होते हैं। 

स्थगित भुगतान

स्थगित भुगतानों का मतलब होता है कि हम कुछ भुगतानों को वर्तमान में नहीं करके उन्हें भविष्य के लिए स्थगित कर देते हैं। इसमें ऋण के भुगतान भी शामिल होते हैं। पहले, वस्तु विनिमय प्रणाली में हमें ऋण का निर्धारण करना बहुत मुश्किल होता था, लेकिन मुद्रा के प्रचलन के बाद हमें इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है और मुद्रा को सब लोग स्वीकार भी करते हैं। इससे किसी देश के व्यापार और वाणिज्य का विकास संभव होता है और जब मुद्रा स्थगित भुगतानों के रूप में कार्य करती है, तो पूंजी निर्माण और साख निर्माण भी बढ़ता है।

मूल्य का संचय

मूल्य का संचय करने के लिए, हम मुद्रा को बचत के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मुद्रा को संचयित करने पर हमें कम स्थान की आवश्यकता होती है और सभी लोग मुद्रा को स्वीकार करते हैं। मुद्रा का मूल्य भी बदलता नहीं होता है। पहले, परंपरागत अर्थशास्त्र में मुद्रा को केवल विनिमय का माध्यम माना जाता था, जबकि केम्ब्रिज अर्थशास्त्र ने मुद्रा के संचय कार्य को अधिक महत्व दिया।

मूल्य का हस्तांतरण

मुद्रा के माध्यम से मूल्य का हस्तांतरण भी आसान हो जाता है। मुद्रा में सामान्य स्वीकृति और तरलता के कारण हम इसे आसानी से हस्तांतरित कर सकते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का हस्तांतरण करना कठिन कार्य होता था, लेकिन जब लोगों के पास अधिक धन होता है, तो वे इसे उधार देकर ऋण के रूप में प्राप्त कर सकते हैं और जिन लोगों को मुद्रा की आवश्यकता होती है, वे मुद्रा का उपयोग करके अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।

आकस्मिक कार्य

आकस्मिक कार्य देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कार्य निम्नलिखित हैं:

1. अधिकतम संतुष्टि: मुद्रा के द्वारा एक व्यक्ति अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। वह मुद्रा का उपयोग करके वस्तुओं और सेवाओं को खरीदता है और इससे अपनी उपयोगिता प्राप्त करता है। उत्पादक भी मुद्रा के माध्यम से अधिकतम लाभ प्राप्त करते हैं और सामाजिक रूप से भी विकास होता है। मुद्रा की मदद से हम वस्तुओं की मान्यता और उत्पादों की मूल्यांकन द्वारा अधिकतम संतुष्टि और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

2. राष्ट्रीय आय का वितरण: मुद्रा के माध्यम से राष्ट्रीय आय का वितरण आसान हो जाता है। हर सामग्री को उसकी मान्यता के हिसाब से मूल्य देकर राष्ट्रीय आय का विवरण किया जा सकता है। मुद्रा द्वारा हम मूल्य का मापन कर सकते हैं और राष्ट्रीय आय की आसानी से अनुमान लगा सकते हैं। राष्ट्रीय आय को मुद्रा के माध्यम से मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में वितरित किया जा सकता है।

3. पूंजी की तरलता में वृद्धि: मुद्रा के प्रचलन से हमारी पूंजी को तरल बनाए रखा जाता है। वस्तुओं के रूप में पूंजी को लेना कठिन हो सकता है, लेकिन मुद्रा के माध्यम से हम आसानी से उसे प्राप्त कर सकते हैं। मुद्रा का उपयोग सौदा, सावधानी और सट्टा के उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

4. साख का आधार: मुद्रा के प्रचलन के बाद से हम साख का निर्माण कर सकते हैं। वर्तमान में दुनिया के अधिकांश देशों में चेक, ड्राफ्ट, विनिमय पत्र आदि साख पत्रों का उपयोग किया जाता है। लोग अपनी अतिरिक्त आय को बैंक में जमा करवाते हैं और इन जमानतों के आधार पर बैंक साख का निर्माण करते हैं।

5. शोधन क्षमता की गारंटी: मुद्रा की एक महत्वपूर्ण भूमिका यह भी है कि यह किसी व्यक्ति, संस्था या कंपनी की शोधन क्षमता की गारंटी देती है। प्रत्येक व्यक्ति, संस्था या कंपनी को अपनी शोधन क्षमता की गारंटी बनाए रखने के लिए कुछ मुद्रा रखना पड़ता है। अगर उस व्यक्ति, संस्था या कंपनी के पास मुद्रा नहीं होती है, तो उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है।

मुद्रा का उपयोग

मुद्रा विभिन्न प्रकार के लेनदेन में उपयोग होती है। मुद्रा के माध्यम से वस्तुएं खरीदी और बेची जाती हैं। जिस व्यक्ति के पास मुद्रा होती है, वह आसानी से किसी भी वस्तु या सेवा को खरीदने के लिए इसका उपयोग कर सकता है।

मुद्रा का महत्व 

वर्तमान समय में मुद्रा बहुत महत्वपूर्ण हो गई है और इसका अध्ययन अर्थशास्त्र के प्रमुख भाग बन गया है। मुद्रा का महत्व निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है।

1. आर्थिक क्षेत्र में मुद्रा का प्रत्यक्ष महत्व: 

मुद्रा के बिना हम वर्तमान समय में कुछ भी नहीं कर सकते। मुद्रा का आर्थिक क्षेत्रों में बहुत महत्व है।

2. विनिमय के क्षेत्र में महत्व: 

मुद्रा के द्वारा हम वस्तुओं की कीमत और लागत का अनुमान लगा सकते हैं। वर्तमान समय में मुद्रा का विनिमय क्षेत्र महत्वपूर्ण है।

3. व्यापार के क्षेत्र में महत्व: 

मुद्रा के विकास से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई है। वस्तु विनिमय प्रणाली में व्यापार के क्षेत्र में भी मुद्रा का महत्व है। मुद्रा के विकास के कारण उत्पादन का पैमाना बढ़ा है और अन्तरराष्ट्रीय व्यापार का आकार बढ़ गया है।

4. वितरण के क्षेत्र में महत्व

मुद्रा के आविष्कार से उत्पादों के साधनों को आसानी से वितरित करना संभव हुआ है। मुद्रा के रूप में पूंजी, ब्याज, मजदूरी, लगान और उद्यमी को लाभ देना सरल हो गया है। वस्तु विनिमय प्रणाली में उत्पादों को वितरित करना यह काम इतना सरल नहीं था

5. पूंजी निर्माण

मुद्रा के आविष्कार के कारण हम आसानी से बचत और निवेश कर सकते हैं। व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद बची हुई आय को बचत कहते हैं। इस बचत को निवेश करके ही पूंजी निर्माण संभव होता है

आर्थिक क्षेत्र में मुद्रा का अप्रत्यक्ष महत्व

मुद्रा अप्रत्यक्ष रूप से हमारे दैनिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। आर्थिक क्षेत्र में मुद्रा के अप्रत्यक्ष और निम्नलिखित ये फायदे हैं:

1. वस्तु विनिमय की असुविधाओं से छुटकार: मुद्रा के विकास से अब हम वस्तुओं की मूल्यांकन और इसे संचय में रखने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं। इससे हमारे समय और धन की बचत होती है, जिसे हम आगे निवेश कर सकते हैं।

2. संगठन के निर्माण: मुद्रा के प्रचलन के बाद हम अपनी अतिरिक्त आय को बैंकों में जमा करके व्यापारिक संगठन का निर्माण कर सकते हैं। मुद्रा ही साख की संभावना बनाती है और इसके आधार पर व्यापारिक ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

3. आर्थिक विकास के मापदंड: मुद्रा के माध्यम से हम प्रत्येक व्यक्ति की आय का राष्ट्रीय स्तर का अनुमान लगा सकते हैं और यह देख सकते हैं कि क्या आय के वितरण में समानता है। अगर समानता है, तो हम कह सकते हैं कि आर्थिक विकास हो रहा है। मुद्रा के माध्यम से हम विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलना कर सकते हैं।

4. पूंजी की गतिशीलता में वृद्धि: मुद्रा के माध्यम से हम पूंजी को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान और एक उद्योग से दूसरे उद्योग में ले जा सकते हैं। इससे पूंजी की गतिशीलता बढ़ती है और देश का उत्पादन वृद्धि करता है।

5. सामाजिक कल्याण का मापक: मुद्रा के माध्यम से सरकारें राष्ट्रीय आय का उपयोग करके सामाजिक कल्याण की गतिविधियों का निर्धारण कर सकती हैं। सामाजिक कल्याण में शिक्षा, बिजली, पानी, मनोरंजन, आवास, सामाजिक सुरक्षा आदि को ध्यान में रखा जाता है।

अनार्थिक क्षेत्र में मुद्रा का महत्व

मुद्रा ने सिर्फ आर्थिक क्षेत्र ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में भी गहरा प्रभाव डाला है। मुद्रा का अनार्थिक क्षेत्र में महत्व निम्नलिखित है:

सामाजिक क्षेत्र में महत्व:

मुद्रा के विकास के कारण लोगों को सामाजिक और आर्थिक बंधनों से मुक्ति मिली है। पहले के समय में, लोग बड़े जमींदारों के सेवक के रूप में काम करते थे और अपने व्यापार को बदलने की स्वतंत्रता नहीं थी। लेकिन मुद्रा के विकास के बाद, लोग अपने व्यापार को अपनी पसंद के अनुसार चुन सकते हैं और उनमें आत्मसम्मान की भावना भी विकसित हुई है।

राजनैतिक क्षेत्र में मुद्रा का महत्व:

• मुद्रा लोगों को कर देने के रूप में सरकार के पास देती है और सरकार उसे सार्वजनिक व्यय के रूप में जनता के लिए खर्च करती है। कर देने के कारण, लोगों में राजनैतिक जागरूकता का विकास हुआ है। मुद्रा द्वारा ही सरकार देश के विकास के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू कर सकती है।

कला क्षेत्र में मुद्रा का महत्व:

मुद्रा के माध्यम से ही कला का मूल्यांकन संभव हुआ है। प्रत्येक सरकार, जो कला प्रेमियों के रूप में उभरती है, मुद्रा के माध्यम से उन्हें प्रोत्साहित करती है ताकि वे अपनी कला को विकसित कर सकें। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि मुद्रा के द्वारा ही कला का विकास संभव हुआ है।

वस्तु विनियम प्रणाली

वस्तुओं के बदले वस्तुओं का लेन-देन करने को हम वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली में दो संयोगों की शर्त की पूर्ति आवश्यक होती है। इसमें धन या मूल्य को संचयित करना कठिनता पैदा कर सकता है। 

अविभाज्य वस्तुओं का विनिमय करना कठिन होता है, क्योंकि वे वस्तुएं भविष्य में उपयोग के लिए संग्रहीत की जाती हैं और इसलिए उन्हें लंबे समय तक संभालना पड़ता है। सेवाओं के मूल्य को निर्धारित और विनिमय करना भी कठिन होता है। 

जब कोई व्यक्ति कुछ बेचना चाहता है और दूसरा व्यक्ति उसे खरीदना चाहता है, बिना मुद्रा का उपयोग किए, तो उन्हें आवश्यकताओं के दोहरे संयोग के बारे में बात कही जाती है।

करेंसी

धन के रूप में हम सामान्यतः सिक्के और कागज़ी नोट को स्वीकार करते हैं। यह धन सरकार द्वारा जारी किया जाता है और हमारी अर्थव्यवस्था में उपयोग होता है। मुद्रा का अतिरिक्त कोई और उपयोग नहीं होता है।

भारत में करेंसी

भारत में भारतीय रिजर्व बैंक (आईआरबीआई) भारत सरकार के द्वारा करेंसी नोट जारी करता है। हम रुपये को व्यापक रूप से मुद्रा के रूप में स्वीकार करते हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के प्रमुख कार्य

 • सरकार ने मुद्रा जारी की है। यह एक ऐसा मुद्रा है जो सरकार द्वारा जारी की जाती है।

• सरकार बैंकों और समितियों की कार्य प्रणाली पर नज़र रखती है।

• सरकार ब्याज की दरों और ऋण की शर्तों पर निगरानी रखती है। इसका मतलब है कि सरकार यह देखती है कि बैंक और समितियां ब्याज की दरें और ऋण की शर्तें कैसे निर्धारित कर रही हैं।

• बैंक कितना नकद शेष अपने पास रखा हुआ है। इसका मतलब है कि सरकार यह जानना चाहती है कि बैंकों के पास कितनी नकदी जमा है। यह जानकारी सरकार के पास होती है।

• ऋण किस प्रकार से वितरित किया जाता है। इसका मतलब है कि सरकार यह देखती है कि ऋण का वितरण कैसे किया जा रहा है और किस प्रकार के ऋण दिए जा रहे हैं।

बैंकों में निक्षेप (जमा)

– मुद्रा को एकत्रित या जमा करने का यह एक अन्य रूप है.

– लोग अपने नाम पर एक बैंक खाता खोलते हैं और बैंकों में अपने अतिरिक्त पैसे जमा करते हैं.

– बैंक जमा राशि स्वीकार करते हैं और इस पर ब्याज (Interest) भी देते हैं.

– बैंक में जमा किए गए धन को जमाकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार निकाल सकते हैं.

माँग जमा

बैंक खातों में जमा धन को निकालने के लिए हम एक प्रक्रिया का उपयोग करते हैं, जिसे हम ‘माँग जमा’ कहते हैं। जब हम किसी व्यक्ति के खाते से एक निश्चित राशि निकालने का आदेश देते हैं, तो इसे हम ‘निकासी’ या ‘वापसी’ कहते हैं। 

चेक की सुविधा

चेक का उपयोग करके हम बिना नकदी का उपयोग किए किसी व्यक्ति को निश्चित राशि का भुगतान कर सकते हैं। चेक एक प्रकार का कागज होता है जिस पर हम किसी दूसरे व्यक्ति के नाम को लिखकर उसे बैंक को देते हैं और उसे बताते हैं कि कितनी राशि किसी को भुगतान की जानी है। यह उन भुगतानों को सुलझाने में मदद करता है जो नकदी के बिना होते हैं।

आधुनिक बैंकिंग प्रणाली

आधुनिक बैंकिंग प्रणाली में हम मुद्रा और तकनीक का उपयोग करके कारोबार करते हैं। यह प्रणाली हमें आसानी से बैंक के साथ संचार करने, खाते की स्थिति और लेन-देन की जानकारी प्राप्त करने, और अन्य स

बैंकों की ऋण संबंधी क्रियाएँ

बैंक लोगों की जमा राशि स्वीकार करते हैं और इस तरीके से वे बड़ी राशि को एकत्र करते हैं।

भारत में बैंक जमा का केवल 15% हिस्सा नकदी (रोकड़) के रूप में अपने पास रखते हैं।

बैंकों की मुख्य आय का प्रमुख स्रोत उनके द्वारा लिए गए ऋण (कर्जदारों से) पर दिया जाने वाला ब्याज और जमा करने वालों को दिया जाने वाला ब्याज के बीच का अंतर होता है।

साख

 साख एक समझौता होता है जिसके तहत ऋणदाता उधारकर्त्ता को पैसे, वस्त्र और सेवाएं उधार देता है और उम्मीद होती है कि उधारकर्ता भविष्य में उसका भुगतान करेगा।

साख संपत्ति के रूप में

एक उदाहरण के रूप में, एक जूता निर्माता जैसे सलीम को त्योहार के समय एक महीने के भीतर बड़ी मात्रा में जूते बनाने का आदेश मिलता है। उसे इस आदेश को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मजदूरों की आवश्यकता होती है और उसे कच्चा माल खरीदना पड़ता है।

उधारदाता आपूर्ति को तुरंत पूरा करने के लिए चमड़ा उपलब्ध कराने की मांग करता है और इसके बाद भुगतान करने का वादा करता है। उसके बाद, उसे व्यापारी से कुछ पैसे उधार लेने की आवश्यकता होती है।

महीने के अंत तक, वह अपनी प्रतिबद्धता पूरी करता है, अच्छा लाभ कमाता है और जो भी पैसे उधार लिए थे, उसका भुगतान कर देता है।

साख ऋणजाल के रूप में

एक किसान स्वप्ना कृषि के खर्चों को साहुकार से उधार लेती है। लेकिन दुर्भाग्य से फसल कीटों या किसी अन्य कारण से नष्ट हो जाती है। ऐसे में वह ऋण का भुगतान नहीं कर पाती है और ऋण ब्याज के साथ बढ़ता जाता है।

सलीम और स्वप्ना दोनों के लिए ऋण की अलग-अलग परिस्थिति होती है।

सलीम के लिए ऋण ने सकारात्मक भूमिका निभाई। उसने पैसे कमाए और ऋण को चुका दिया।

स्वप्ना के लिए ऋण की नकारात्मक भूमिका थी। वह ऋण को चुकाने और पैसे कमाने में असमर्थ थी। वह कर्ज-जाल में फंस गई और उसे अपनी जमीन बेचनी पड़ी।

कर्ज – जाल उत्पन्न होने की परिस्थितियाँ

जब एक व्यक्ति अपना पुराना कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं होता है, तो वह एक नया कर्ज लेता है।

वह अपनी परिसंपत्ति को बेचने के लिए दबाव में आता है ताकि वह ऋण की वसूली कर सके।

इस प्रक्रिया के फलस्वरूप उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती है और वह पहले से भी बदतर हो जाता है।

ऋण की शर्तें

ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, आवश्यक कागजात, और भुगतान के तरीकों को एकत्रित रूप से ऋण की शर्तें कहा जाता हैं। ऋण की शर्तें विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं।

समर्थक ऋणाधार

समर्थक ऋणाधार एक व्यक्ति या संगठन होता है जो उधार दाता, उधार प्राप्तकर्ता से परिसम्पत्तियों की मांग करता है, ताकि वह उन परिसम्पत्तियों को बेचकर अपना उधार वसूल कर सके। इन परिसम्पत्तियों को ही समर्थक ऋणाधार कहा जाता है। 

उदाहरण के लिए, कृषि भूमि, जेवर, मकान, पशुधन, बैंक में जमा धन इत्यादि समर्थक ऋणाधार के रूप में सम्पत्तियाँ शामिल हो सकती हैं।

विविध प्रकार की साख व्यवस्था

गांवों में लोग अक्सर फसल उत्पादन के लिए ऋण की मांग करते हैं। इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पानी, बिजली, उपकरणों की मरम्मत आदि पर बहुत खर्च होता है। एक गांव में अलग-अलग उधारकर्ताओं के लिए अलग-अलग ऋण व्यवस्था होती है, जैसे:

1. साहूकारों से ऋण: छोटे किसान गांव के साहूकारों से बहुत ब्याज दर पर पैसे उधार लेते हैं। यहाँ पर उच्च ब्याज दर की वजह से वे कर्ज में फंस जाते हैं।

2. व्यापारियों से ऋण: किसानों को कम ब्याज दर पर कृषि व्यापारियों से ऋण मिलता है। व्यापारियों को भी किसानों से उनकी फसल को बेचने का वादा मिलता है। इस तरीके से व्यापारी सुनिश्चित करता है कि धन लाभ कमाने के साथ-साथ उसे किसानों का सहयोग भी मिलेगा। वह कम दाम पर किसानों से फसल खरीदता है और जब कीमतें उच्च होती हैं, तो उसे वह फसल बेचता है।

3. बैंकों से ऋण: मध्यम और बड़े किसान खेती के लिए बैंकों से बहुत कम ब्याज दर पर खेती के लिए बैंक से ऋण लेते हैं। बैंक इसे छोटे ब्याज दर पर प्रदान करती है और अन्य सुविधाएं भी प्रदान करती है।

4. नियोक्ता से ऋण: भूमिहीन कृषि मजदूर और अन्य मजदूर अपने नियोक्ताओं पर निर्भर रहते हैं और मजदूरी के बदले में उन्हें हर महीने 5% ब्याज दर पर ऋण मिलता है। इसके बदले में, वे जमींदारों के लिए काम करते हैं।

5. सहकारी समितियों से ऋण: यह ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते ऋण का प्रमुख स्रोत है। सहकारी समितियों के सदस्यों को कृषि उपकरण, खेती और कृषि व्यापार, मत्स्यपालन, घरों के निर्माण और अन्य खर्चों की खरीद के लिए ऋण प्रदान किया जाता है।

कुछ व्यक्तियों या समूहों को बैंक के द्वारा कर्ज नही देने के कारण

• ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की अनुपस्थिति।

• समर्थक ऋणाधार न होना: ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सारे लोगों के पास समर्थक ऋणाधार नहीं होता है। इसके कारण उन्हें बैंकों से ऋण लेने में कठिनाईयां आती हैं।

• जरूरी कागजात न होना: बैंकों से ऋण लेने के लिए कई जरूरी कागजात की आवश्यकता होती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन कागजात की उपलब्धता कम होती है और यह लोगों के लिए परेशानी का कारण बनती है।

• ऋण की शर्तें पूरी न कर पाना: बैंकों द्वारा दी गई ऋण की कई शर्तें होती हैं जैसे कि ब्याज दर, चुकाने की अवधि, तकनीकी शर्तें आदि। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इन शर्तों को पूरा करने में समर्थ नहीं होते और इस कारण ऋण प्राप्ति में परेशानी होती है।

भारत में औपचारिक क्षेत्रक में साख

भारत में ऋणों को दो प्रकारों में बाँटा जाता है – एक तो औपचारिक ऋण और दूसरा अनौपचारिक ऋण।

औपचारिक ऋण क्षेत्र में बैंक और सहकारी समितियाँ शामिल होती हैं।

• अनौपचारिक ऋण क्षेत्र में मित्र, रिश्तेदार, व्यापारी, साहूकार, जमींदार, बड़े किसान आदि शामिल होते हैं।

साख के स्रोत

2012 में भारत में 1000 ग्रामीण परिवारों के साख के स्रोत इस तरह थे: 

• व्यावसायिक बैंक – 25%: इसका मतलब है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 25% परिवारों का व्यापारिक बैंक से सहायता मिलती थी।

• सहकारी समितियाँ / बैंक – 25%: इसका अर्थ है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 25% परिवारों का सहकारी समितियों या बैंक से सहायता मिलती थी।

• अन्य औपचारिक स्रोत – 5%: यहां तक कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 5% परिवारों का औपचारिक स्रोतों द्वारा सहायता मिलती थी।

• रिश्तेदार और मित्र – 8%: यह इसका मतलब है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 8% परिवारों का रिश्तेदार और मित्रों से सहायता मिलती थी।

• सरकारी – 1%: यह इसका अर्थ है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 1% परिवारों का सरकार से सहायता मिलती थी।

• जमींदार – 1%: यह इसका मतलब है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 1% परिवारों का जमींदार से सहायता मिलती थी।

• साहूकार – 33%: यह इसका मतलब है कि 1000 ग्रामीण परिवारों में से 33% परिवारो का साहूकारों से सहायता मिलती थी।

• अन्य अनौपचारिक स्रोत – 2%:

साख के औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र की विशेषताएँ

औपचारिक क्षेत्र में ऋण की विशेषताएँ:

– औपचारिक क्षेत्र में ऋण कम ब्याज दर पर प्रदान किया जाता है और ऋण प्राप्त करने के लिए समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता होती है।

– यह क्षेत्र मुख्य रूप से भारतीय रिजर्व बैंक के निगरानी में होता है और इसमें बैंक और सहकारी समितियाँ शामिल होती हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र में ऋण की विशेषताएँ:

– अनौपचारिक क्षेत्र में ऋण उच्च ब्याज दर पर प्रदान किया जाता है, क्योंकि इस क्षेत्र की कोई निगरानी नहीं होती है और ऋण प्राप्त करने के लिए समर्थक ऋणाधार की सुरक्षा की आवश्यकता नहीं होती है।

– यह क्षेत्र उधारकर्ताओं के ऋण को बढ़ा सकता है और उन्हें कर्ज के जाल में फँसा सकता है, अर्थात् उधारकर्ता पर ऋण का बोझ अधिक हो सकता है।

– इसके अलावा, जो लोग अनौपचारिक क्षेत्र से उधार लेकर उद्यम शुरू करना चाहते हैं, वे उधार की ब्याज दर ऊँची होने के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं।

हालांकि, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी गरीब परिवार अपनी उधार की जरूरतों के लिए औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर हैं, क्योंकि यहाँ उन्हें किसी भी प्रकार के समर्थक ऋणाधार की आवश्यकता नहीं होती है।

स्वंय सहायता समूह

स्वयं सहायता समूह एक समूह होता है जिसमें ऐसे लोग शामिल होते हैं जो समाज में समान स्थिति और आर्थिक पेशे से होते हैं। इन लोगों का उद्देश्य नियमित रूप से धन बचाना होता है।

स्वयं सहायता समूह में आमतौर पर 15 से 20 सदस्य होते हैं, जो एक दूसरे के पड़ोसी होते हैं। जब उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज की आवश्यकता होती है, तो वे छोटे कर्ज समूह से कर्ज ले सकते हैं।

समूह ब्याज के रूप में काम करता है, लेकिन यह ब्याज साहूकार द्वारा लिए जाने वाले ब्याज से कम होता है। 

अगर समूह एक या दो साल तक नियमित रूप से धन बचाता है, तो उसे बैंक से ऋण प्राप्त करने के लिए पात्र माना जाता है।

गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूह संगठनों का मूल उद्देश्य है।

• गरीबों को संगठित रूप में कार्य के लिए

• स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना: लोगों को अपने उद्यमों और व्यापारों की ओर प्रेरित करना, ताकि वे अपने आप को रोजगारी से बाहर निकाल सकें।

• शोषण से बचाना: लोगों को शोषण और उत्पीड़न से बचाना, जैसे कि मज़दूरों को ग़ैरकानूनी तरीके से काम करने से रोकना।

• कर्जदारों को ऋण जाल से बचाना: लोगों को कर्ज संबंधी जाल से बचाना, जैसे कि उच्च ब्याज दर पर लोन लेने से रोकना।

• स्वावलंवन और रोजगार: लोगों को अपनी कौशलों और प्रतिभाओं का स्वावलंवन करना, ताकि वे अपने रोजगार को खुद तैयार कर सकें। 

स्वंय सहायता समूह के कार्य 

• बिना समर्थक ऋणभार के ऋण देना: स्वंय सहायता समूह द्वारा सदस्यों को सहायता देना बिना बैंक या ऋण कंपनियों के सहायता के ऋण देना।

• सदस्यों की जमा पूंजी इकट्ठा करना: समूह में सदस्यों से धन इकट्ठा करना।

• ग्रामीण विकास विशेषकर महिलाओं को एकत्रित करना: गांवों में महिलाओं को एकत्रित करना और उनके विकास के लिए संगठन और सहयोग प्रदान करना।

• कम ब्याज दर पर ऋण देना: लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता मिल सके।

• विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर चर्चा को मंच देना: विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें हल करने के लिए एक मंच प्रदान करना।

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