कक्षा 10 के अर्थशास्त्र के पहले अध्याय “विकास” में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 1: विकास नोट्स (Class 10 Economics Chapter 1 notes) दिए गए हैं। जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 1: विकास
अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन, वितरण और खपत की क्रियाएं संगठित होती हैं। यह एक देश या क्षेत्र के आर्थिक चित्र को दर्शाने वाली होती है। यह चित्र एक निश्चित समयावधि के लिए होता है। उदाहरण के लिए, अगर हम ‘समकालीन भारतीय अर्थव्यवस्था’ कहते हैं तो इसका मतलब होता है कि हम वर्तमान के भारत की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य होता है किसी विशेष ढांचे के अंतर्गत लोगों की आर्थिक क्रियाओं की जांच और अध्ययन करना।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यदि हम क्षेत्रफल की दृष्टि से देखें, तो यह विश्व में सातवें स्थान पर है। जनसंख्या के मामले में भी भारत दूसरी स्थान पर है और केवल 2.4% क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व की जनसंख्या के 17% भाग को आवास प्रदान करता है।
1991 से भारत में बहुत तेजी से आर्थिक प्रगति हुई है जबसे उदारीकरण और आर्थिक सुधार नीतियां लागू की गई हैं और भारत विश्व में एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा है। सुधारों से पहले मुख्य रूप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियंत्रण था और सुधार लागू करने से पहले इसका काफी विरोध भी हुआ, लेकिन आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम आने से विरोध काफी कम हो गया है। हालांकि, मूलभूत ढांचे में तेजी न होने के कारण एक बड़ा भागभगवान अभी भी निराश है और इन सुधारों से अभी भी बहुत सारे लोग लाभान्वित नहीं हुए हैं।
पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों (सांकेतिक) के आधार पर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अप्रैल 2014 की रिपोर्ट में विश्व बैंक ने वर्ष 2011 के मानक मूल्यों के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किया। यूनाइटेड नेशंस स्टैटिस्टिकल डिवीजन (यूएनएसडी) के राष्ट्रीय लेखों के प्रमुख समाहार डाटाबेस के अनुसार, दिसंबर 2013 के आधार पर, भारत की वर्तमान मूल्यों के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद की रैंकिंग 10वीं है और प्रति व्यक्ति सकल आय की रैंकिंग 161वीं है। सन 2003 में, विश्व बैंक के अनुसार, भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में 143वें स्थान पर था।
इतिहास
भारत की अर्थव्यवस्था की विकास कहानी सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू होती है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय में व्यापार पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था और यह व्यापार यातायात के माध्यम से विकास करता था। लगभग 600 ईसा पूर्व के दौरान, महाजनपदों ने सिक्कों का प्रचार किया, जो व्यापारिक गतिविधियों और नगरीय विकास के प्रतीक बने। इस समय में व्यापार एवं वाणिज्य को महत्व दिया जाता था।
300 ईसा पूर्व से मौर्य काल ने भारत को एकीकृत किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा के साथ, कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और व्यापार एवं आर्थिक प्रणाली को बढ़ावा मिला।
अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकूट, होयसल और पश्चिमी गंग जैसी प्रमुख सभ्यताएं विकसित हुईं। इस अवधि के दौरान, भारत ने प्राचीन और मध्ययुगीन विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पहचानी गई। मराठा साम्राज्य के पास इस अवधि में दुनिया की कुल सम्पति की तिहाई से एक चौथाई धन था, जबकि यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान इसमें तेजी से गिरावट आई।
भारत और यूरोप के बीच मसालों का व्यापार मुख्यतः विश्वास होता था, जिससे अन्वेषण काल की शुरुआत हुई।
आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक “द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पस्पेंक्टिव” (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हजार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार, भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। भारत में इसके स्वतंत्रता के बाद से केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है, जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमन, लाल फीताशाही, और व्यापार अवरोध शामिल हैं। 1991 के आर्थिक संकट के बाद केंद्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति शुरू की। इससे भारत ने आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देना शुरू किया और विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना।
सकल घरेलू उत्पाद
2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भारतीय रुपयों में 113550.73 अरब रुपये था।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या सकल घरेलू आय (जीडीआई) एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक प्रदर्शन का माप होता है। यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओं की बाजार मूल्य होती है। जीडीपी को तीन प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है, जिनमें से सभी अवधारणात्मक रूप से समान होते हैं।
पहले, यह एक निश्चित समयावधि (आमतौर पर 365 दिनों का एक वर्ष) में एक देश के भीतर उत्पादित सभी अंतिम माल और सेवाओं के लिए किए गए कुल व्यय के बराबर होता है।
दूसरा, यह एक देश के भीतर एक अवधि में सभी उद्योगों द्वारा उत्पन्न की गई प्रत्येक अवस्था (मध्यवर्ती चरण) पर कुल वर्धित मूल्य और उत्पादों पर सब्सिडी को हटाकर योग के बराबर होता है।
तीसरा, यह एक अवधि में देश में उत्पन्न हुई आय के योग के बराबर होता है, जिसमें कर्मचारियों के क्षतिपूर्ति की राशि, उत्पादन पर कर और सब्सिडी के बिना आयात और सकल परिचालन अधिशेष (या लाभ) शामिल होते हैं।
GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के मापन और मात्र निर्धारण का सबसे आम तरीका है खर्च या व्यय विधि (expenditure method): GDP (सकल घरेलू उत्पाद) = उपभोग + सकल निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात – आयात), या, GDP = C + I + G + (X-M).
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में से पूंजी शेयर के मूल्यहास को घटाया नहीं गया है। यदि शुद्ध निवेश (जो सकल निवेश माइनस मूल्यहास होता है) को उपर्युक्त समीकरण में सकल निवेश के स्थान पर लागू किया जाए, तो शुद्ध घरेलू उत्पाद का सूत्र प्राप्त होता है।
इस समीकरण में उपभोग और निवेश अंतिम माल और सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय को संक्षेप में दर्शाया जाता है।
2015 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद
> $64,000
$32,000 – 64,000
$16,000 – 32,000
$8,000 – 16,000
$2,000 – 4,000
$4,000 – 8,000
$1,000 – 2,000
$500 – 1,000
< $500
समीकरण का निर्यात-आयात वाला भाग (जिसे अक्सर शुद्ध निर्यात कहा जाता है) वह भाग होता है जो घरेलू रूप से उत्पन्न नहीं होने वाले व्यय को कम करके (आयात) और फिर उसे घरेलू क्षेत्र में जोड़कर (निर्यात) समायोजित करता है।
अर्थशास्त्र में (कीनेज के बाद से) सामान्य उपभोग के पद को दो भागों में बांटने का प्रयास किया जाता है: निजी उपभोग और सार्वजनिक (या सरकारी) खर्च.
• सैद्धांतिक मैक्रोइकोनॉमिक्स में इस प्रकार की विभाजन के दो फायदे होते हैं:
निजी उपभोग कल्याणकारी अर्थशास्त्र के एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। निजी निवेश और अर्थव्यवस्था के व्यापारी भाग अंततः (मुख्यधारा आर्थिक मॉडल में) दीर्घकालीन निजी उपभोग में वृद्धि को निर्देशित करते हैं।
यदि संशोधित निजी उपभोग को सरकारी उपभोग से अलग किया जाए, तो सरकारी खर्च को बहिष्कार किया जा सकता है, जिससे सरकारी व्यय को भीभांति एक व्यापक आर्थिक के भीतर माना जा सकता है। इससे एक आर्थिक ढांचे के रूप में सरकारी व्यय के विभिन्न स्तरों को समझने में मदद मिलती है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
वर्ष 2000 में, भारत का वैश्विक निर्यात और आयात में हिस्सा क्रमश: 0.7% और 0.8% था। लेकिन, 2013 में इस हिस्से में वृद्धि हुई और यह 1.7% और 2.5% हो गया। भारत के कुल वस्तु व्यापार में भी सुधार हुआ है। 2000-01 में इसका हिस्सा 21.8% था जो 2013-14 में 44.1% हो गया।
2013-14 में, भारत का वस्तु निर्यात 312.6 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचा। यह 2012-13 के मुकाबले 4.1% की वृद्धि दर्ज की, जबकि 2012-13 में 1.8% की कमी हुई थी।
2012-13 के मुकाबले, 2013-14 में आयातों में 8.3% की गिरावट आई। तेल-भिन्न आयातों में 12.8% की गिरावट का कारण बना। सोने का आयात भी कम हुआ। इसके कारण, 2013-14 में सोने और चांदी के आयात में 40.1% की गिरावट हुई और वह 33.4 बिलियन अमरीकी डॉलर पर पहुंच गया। व्यापार में आयातों की गिरावट और सामान्य निर्यात की वृद्धि के कारण, भारत का व्यापार 2012-13 के 190.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से कम होकर 137.5 बिलियन अमरीकी डॉलर पर आगया। इससे वर्तमान व्यापार घाटा हुआ है।
चालू खाता घाटा
2012-13 में कैड में बहुत ज़ोरदार वृद्धि हुई और यह 2011-12 के 78.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से काफी अधिक, 88.2 बिलियन अमरीकी डॉलर (सामान्य घरेलू उत्पाद का 4.7 प्रतिशत) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। सरकार ने त्वरित कदम उठाए, जैसे सोने के आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया, जिसके परिणामस्वरूप, 2012-13 में व्यापार घाटा 10.5 प्रतिशत से कम होकर 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद के 7.9 प्रतिशत रह गया।
विदेशी ऋण
भारत का विदेशी ऋण स्टॉक मार्च 2012 में 360.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले मार्च 2013 में 404.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था। दिसंबर 2013 तक यह और बढ़कर 426.0 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया। [2] यहां एक बिलियन डॉलर के बराबर एक अरब डॉलर होता है, तो 426 बिलियन डॉलर के बराबर 426 अरब डॉलर होते हैं। एक डॉलर के बराबर 60 रुपये होते हैं, इसलिए 426 अरब डॉलर के बराबर 25560 अरब रुपये होते हैं। यानी 25560 अरब रुपये = 2556000 करोड़ रुपये = 25,56,000,000 करोड़ रुपये = पचास चावन्न करोड़ रुपये।
विकास के लक्ष्य भिन्न-भिन्न एवं परस्पर विरोधी कैसे
• हर व्यक्ति या समूह का विकास का लक्ष्य अलग-अलग हो सकता है और कई बार इनके लक्ष्यों की प्रकृति एक दूसरे से भिन्न भी हो सकती है। एक व्यक्ति के लिए विकास का लक्ष्य दूसरे के लिए विनाश का कारण भी बन सकता है। उदाहरण के रूप में, एक नदी पर बाँध बनाने से किसानों को अपने गाँव छोड़कर दूसरे स्थानों पर बसने की आवश्यकता हो सकती है।
• आय के अतिरिक्त, हमारे जीवन में अन्य कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
• आय के अतिरिक्त, बेहतर जीवन के लिए परिवार, रोजगार, मित्रता, सुरक्षा और समानता की भावना, शांतिपूर्ण माहौल आदि भी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि मुद्रा के माध्यम से हम केवल भौतिक वस्तुएँ ही खरीद सकते हैं।
आर्थिक विकास
यह एक प्रक्रिया है जिसमें एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक “प्रति व्यक्ति आय” दीर्घ अवधि में बढ़ती है।
आर्थिक विकास के लिए साक्षरता की अनिवार्यता
• साक्षरता के बिना, हमें ज्ञान और कौशल प्राप्त नहीं होता है।
• साक्षरता बढ़ने से रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
• नई तकनीकों का उपयोग और स्तर बढ़ता है। इससे लोगों में स्वास्थ्य, पर्यावरण और अन्य मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
• साक्षरता बढ़ने से नए उद्योगों को स्थापित करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
एक देश की आय क्या होती है?
किसी देश की आय उस देश के सभी निवासियों की आय होती है। इससे हमें देश की कुल आय पता चलती है।
देशों के विकास को नापने वाले कारक
देशों के विकास को नापने के लिए औसत आय के साथ सार्वजनिक सुविधाओं की उपलब्धता, स्वास्थ्य सेवाएँ, जन्म और मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, प्रदूषण मुक्त वातावरण आदि मानकों का भी प्रयोग किया जाता है।
देश की औसत आय की गणना
प्रत्येक देश के औसत आय की गणना अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा डॉलर में की जाती है। यह गणना देश के आर्थिक स्तर को मापने के लिए उपयोगी होती है। इससे हमें देशों के बीच विकास की तुलना करने में मदद मिलती है।
एक विकासशील और विकसित देश की मुख्य विशेषताएँ
विकसित देश:
• नई तकनीक और विकसित उद्योग की मौजूदगी।
• उच्च स्तर की जीवन शैली और आवास।
• उच्च प्रति व्यक्ति आय।
• साक्षरता दर की उच्चता।
• लोगों की स्वास्थ्य स्थिति बेहतर होती है (जन्मदर, मृत्यु दर को नियंत्रित किया जाता है)।
विकासशील देश:
• तकनीकी रूप से पिछड़ा हुआ।
• निम्न प्रति व्यक्ति आय।
• साक्षरता दर कम होती है।
• सामान्य जीवन शैली और आवास।
• स्वास्थ्य की अधिक मात्रा की कमी (अधिक मृत्यु दर)।
आर्थिक नियोजन
आर्थिक नियोजन का अर्थ है कि हम देश के संसाधनों का सही ढंग से उपयोग करके देश के विकास को योजनाबद्ध रूप से बढ़ाते हैं।
राष्ट्रीय आय का मतलब
देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की मूल्य के साथ ही विदेशों से प्राप्त आय को जोड़कर प्राप्त होने वाली आय को कहते हैं।
प्रति व्यक्ति आय
प्रति व्यक्ति आय का मतलब है कि जब देश की कुल आय को उस देश की जनसंख्या से भाग कर दिया जाता है, तो मिलने वाली राशि को हम प्रति व्यक्ति आय कहते हैं। भारत मध्य आय वर्ग के देशों में आता है क्योंकि उसकी प्रति व्यक्ति आय 2019 में केवल US $ 6700 प्रति वर्ष थी।
शिशु मृत्यु दर
एक वर्ष में पैदा हुए 1,000 जीवित बच्चों में उस वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात।
साक्षरता दर
साक्षरता दर का मतलब है कि 7 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात।
निवल उपस्थिति अनुपात
निवल उपस्थिति अनुपात का मतलब है कि 14 और 15 वर्ष की आयु वाले सभी बच्चों का उसी आयु वर्ग के सभी बच्चों के साथ कितना प्रतिशत है।
बी. एम. आई.
शरीर का द्रव्यमान सूचकांक पोषण वैज्ञानिक होता है, जिसके द्वारा हम किसी व्यस्क के उपोषित होने की जांच कर सकते हैं। यदि यह सूचकांक 18.5 से कम होता है, तो व्यक्ति कुपोषित माना जाता है, और यदि यह 25 से ऊपर होता है, तो व्यक्ति मोटापे से प्रभावित होता है।
मानव विकास सूचकांक
आय और अन्य कारकों की समाकेतिक सूची उस देश के गुणवत्ता के आधार पर उसे वर्गीकृत करने का तरीका है। यह एक मापदंड है जिसका उपयोग विभिन्न देशों के विकास स्तर का मूल्यांकन करने में किया जाता है। इसमें देशों की तुलना उनके लोगों की शिक्षा स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय पर आधारित होती है।
मानव विकास सूचाकांक में भारत का स्थान
+ मानव विकास सूचाकांक की गणना में भारत का 136 वाँ स्थान है।
विकास की धारणीयता
विकास की धारणीयता का मतलब है कि हम पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना विकास करें और साथ ही भावी पीढ़ियों की जरूरतों को भी ध्यान में रखें, जो वर्तमान पीढ़ियों की जरूरतों के साथ-साथ होती हैं।
विकास की धारणीयता की विशेषताएं:
- संसाधनों का समझदारीपूर्ण उपयोग करना।
- नवीनीकरणीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना।
- वैकल्पिक संसाधनों की खोज में मदद करना।
- संसाधनों के पुनः उपयोग और चक्रीय प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना।
नवीकरणीय साधन
भूमिगत जल नवीकरणीय साधन का एक उदाहरण है। ये साधन फसल और पौधों के प्राकृतिक नवीकरण का कार्य करते हैं, लेकिन हमें इन साधनों का संयम से उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर हम भूमिगत जल को बरसात द्वारा होने वाले प्राकृतिक नवीकरण से अधिक उपयोग करते हैं, तो हम इस साधन का अत्यधिक उपयोग कर रहे होंगे।
गैर नवीकरणीय साधन
गैर नवीकरणीय साधन ऐसे होते हैं जो कुछ सालों के उपयोग के बाद समाप्त हो जाते हैं। इन साधनों की पृथ्वी पर सीमित राशि मौजूद होती है और उनकी पुनर्नवीकरण संभव नहीं होती।
उदाहरण: जीवाश्म ऊर्जा साधन (तेल, कोयला) और धातु (लोहा, सीसा, एल्युमिनियम) और खनिज (यूरेनियम) आदि।