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मौलिक अधिकार
संविधान में मूल अधिकार को स्थान देना का उद्देश्य नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय , और सुरक्षा प्रदान करना था।
मूल अधिकारों को भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 में स्थान दिया गया है। भाग 3 को भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
1215 ईस्वी में इंग्लैंड के राजा द्वारा इंग्लैंड की जनता को दिए गए, अधिकारों को मैग्नाकार्टा कहा जाता था। मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन वर्तमान में सभी भारतीयों को छः मूल अधिकार दिए गए है।
नोट:- 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों के रूप में समाप्त कर दिया गया। इसे एक विधिक अधिकार बना दिया गया। जिसका उल्लेख अनुच्छेद 300 (क) में किया गया है।
मौलिक अधिकार राज्य के विरुद्ध में प्राप्त होते हैं, इस कारण से इनकी प्रकृति निषेधात्मक होती है।संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है।
संपूर्ण मौलिक अधिकार
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- संस्कृति व शिक्षा संबंधित अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
मौलिक अधिकारों का वर्णन
1. समानता का अधिकार – (अनुच्छेद 14 से 18)
भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, राज्य में रोजगार के अवसरों की समानता, एवं सामाजिक समानता, प्रदान की गई है। इस के लिए संविधान निम्न प्रकार प्रावधान किए गए हैं –
(क) विधि के समक्ष समानता-
अनुच्छेद 14 के तहत संविधान, क्षेत्र में किसी भी मनुष्य को समानता या कानून के समक्ष संरक्षण से अलग नहीं करेगा। अर्थात कानून के समक्ष सभी नागरिक सम्मान होंगे और किसी भी व्यक्ति के साथ ऊंच-नीच का भेद नहीं किया जाएगा
(ख) वंश, जाति, व जन्म स्थान, के आधार पर भेद का विरोध
अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी व्यक्ति या नागरिक के साथ धर्म, गरीबी, वंश, लिंग, आर्थिक स्थिति व जन्म स्थान, के आधार पर किसी भी तरह का भेद नहीं कर सकता। और सभी नागरिक राज्य की नजर में समान होंगे
(ग) लोक नियोजन में अवसरों की समानता
अनुच्छेद 16 के तहत लोक नियोजन के अवसर प्राप्त करने के लिए सभी को समान अवसर प्राप्त होंगे । इस अनुच्छेद के तहत देश के सभी नागरिकों को राज्य के अधीन नौकरी में समान अवसर प्रदान करने की बात कही गई है , तथा राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ अवसरो में धर्म, मूल, वंश, जाति, निवास स्थान, के आधार भेदभाव नहीं करेगा ।
नोट :- अनुच्छेद 16 (4) में यह उल्लेख किया गया है कि राज्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था की करेगा।
(घ) अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 17 के तहत नागरिको के साथ जाती के आधार पर होने वाले भेद को रोका गया। अनुच्छेद 17 के उद्देश्यों को पूरा करने हेतु अस्पृश्यता निवारण अधिनियम 1955 बनाया गया। जिसका 1997 में नाम बदलकर नागरिक अधिकार अधिनियम कर दिया गया।
(ड) उपाधियों का अंत
अंग्रेजो के साम्राज्य में संपति व शक्ति के के अनुसार उपाधिया दी जाती थी,। इसे रोकने के लिए अनुच्छेद 18 में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है, कि शिक्षा व सेना से संबंधित उपाधियां ही दी जाएगी।
नोट :-अनुच्छेद 18 में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत का कोई भी नागरिक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी भी अन्य देश से किसी भी प्रकार की उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता।
2. स्वतंत्रता का अधिकार – (अनु. 19 – 22)
अनुच्छेद 19 में छ: प्रकार की स्वतंत्रता ओं का उल्लेख किया गया है। भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,शस्त्रहिन शांति पूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता, राज्यों में आबाद भ्रमण व निवास करने की स्वतंत्रता, एंव आजीविका की स्वतंत्रता एवं व्यापार व कारोबार की स्वतंत्रता नागरिको को प्रदान की गई है।
(क)
विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (क)के अनुसार भारत के सभी नागरिकों को विचार अभिव्यक्त करने तथा भाषण देने और अन्य व्यक्तियों के साथ विचारों का प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता दी गई है।
नोट:- सूचना का अधिकार व प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख संविधान में नहीं है इन दोनों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही भाग माना जाता है
अस्त्र-शस्त्र रहित शांतिपूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (ख) के अनुसार सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण व बिना अस्त्र-शस्त्र के सभा व सम्मेलन में जाने का अधिकार प्रदान किया गया है ।
संघ व समुदाय निर्माण की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (ग) के अनुसार नागरिक मिलकर अपना समुदाय या संघ बना सकते हैं,किंतु राज्य हित में इस समुदाय को भी प्रतिबंधित किया जा सकता है ।
नोट – 97 वे संविधान संशोधन 2012 द्वारा इस अनुच्छेद के अंतर्गत सहकारी संस्थाओं को स्थापित करने की स्वतंत्रता का भी उल्लेख किया गया है।
सर्वत्र आने जाने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (घ) के अनुसार भारत के नागरिकों को राज्य व क्षेत्र में आबाद रूप से आने-जाने की स्वतंत्रता दि गई है।
निवास करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (ड) के अनुसार भारतीय संविधान राज्य के किसी भी क्षेत्र में निवास करने या रहने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
व्यापार व वाणिज्य की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 (छ) द्वारा सभी नागरिकों को अपनी आजीविका चलाने हेतु व्यापार तथा व्यवसाय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। किंतु जनहित में नशीली व खतरनाक चीजों के व्यापार करने तथा अन्य ऐसे कार्य करना जो राज्य हित में न हो उन्हें निषेध किया जा सकता है।
(ख) अपराधों के लिए दोष सीधी के विषय में संरक्षण
अनुच्छेद 20 में अपराधों के संबंध में तीन बातों का उल्लेख किया गया है-
- जिस व्यक्ति ने जिस समय अपराध किया है, उसे उसी समय कानून के तहत ही सजा दी जा सकती है।
- ऐक दोषी को एक दोष के लिए एक ही दंड दी दिया जा सकता है।
- किसी भी अपराधी को खुद के विरुद्ध गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
(ग) जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
अनुच्छेद 21 के तहत किसी भी व्यक्ति को जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार से वंचित नहीं किया जा सकता। यह अनुच्छेद आपातकाल में भी निलंबित नहीं होता।
नोट: – मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978 के मामले में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गरिमा के साथ जीने के अधिकार को स्वीकार किया गया था।
अनुच्छेद 21(A) में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाए।
(घ) बंदीकरण में संरक्षण
अनुच्छेद 22 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसे जो अधिकार प्राप्त है उनका उल्लेख इस अनुच्छेद में किया गया है। जो नीचे दिए गए हैं –
- स्वयं की गिरफ्तारी के कारणों को पूछने का अधिकार।
- व्यक्ति को वकील से सहायता लेने का अधिकार।
- उसे चोबीस घंटों के अंदर न्यायधीश के समक्ष उपस्थित होने का अधिकार।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनु. 23 और 24)
संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 के तहत सभी भारतीयों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के तहत जनता के साथ होने वाले शोषन का अंत किया गया है।
(क). मानव के क्रय – विक्रय व बेगार प्रथा पर रोक
अनुच्छेद 23 के तहत बेगार प्रथा तथा मानव के व्यापार पर रोक लगाई गई है। हमारे देश में सदियों से किसी ना किसी रूप से दासता की प्रथा विद्यमान थी, जिसे समाप्त करने के लिए इस अनुच्छेद को बनाया गया था
(ख). बाल श्रम निषेध
अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक कारखानों, व खानों अथवा जोखिम वाले काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता अर्थात उन से काम नहीं करवाया जा सकता।
4.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
हमारा देश ऐक धार्मिक देश है। तथा यहा सभी धर्मों के लोग रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।
(क). अंतःकरण की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 25 इस के तहत सभी लोगों को लोक स्वस्थ, सदाचार, और स्वास्थ्य, के अंतर्गत रहते हुए, 1 अपने अपने धर्म को मानने 2.अपने धर्म का प्रचार करने 3.धर्म के अनुरूप आचरण करने तथा 4 अंतरण की स्वतंत्रता दी गई है।
नोट :- शिखो द्वारा कृपाण को धारण किया जाना अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के अनुरूप आचरण है
(ख). धार्मिक मामलों का प्रबंध करने की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 26 के तहत सभी धर्म के लोगो को निम्न प्रकार की स्वतंत्रताए दी गई है –
- अपनी धार्मिक संस्थाओं को स्थापित करना
- धार्मिक संस्थाओं का प्रबंध करना
- चल व अचल संपत्ति अर्जित करना
- उस संपत्ति का समुचित उपयोग करना
(ग). धार्मिक मामलों में समानता
अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को एक विशेष धर्म को बढ़ावा देने हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सरकार धार्मिक संस्थाओं को अनुदान दे सकती है लेकिन इस संदर्भ में उन्हें सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना होता है।
(घ). शिक्षण संस्थानों में समानता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28 के तहत किसी भी शिक्षण संस्थान में किसी भी प्रकार की धर्म से संबंधित शिक्षा नहीं दी जा सकती।
5.शिक्षा व संस्कृति का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
(क). अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की रक्षा
अनुच्छेद 29 के अनुसार सभी अल्पसंख्यक तथा गरीब लोगों को अपनी भाषा, लिपि, तथा संस्कृति, को बनाए रखने का अधिकार प्रदान किया गया है। तथा शैक्षणिक संस्थानों में अल्पसंख्यक जाति के लोगो को समान अवसर दिए जाएंगे।
(ख). अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षण संस्थानों की स्थापना का अधिकार
अनुच्छेद 30 के अनुसार सभी अल्पसंख्यक वर्ग व गरीब लोगों को अपनी शिक्षण संस्थानों को स्थापित करने तथा प्रबंध करने का अधिकार दिया गया है।
नोट:- अनुच्छेद 30 के कारण ही मदरसों में इस्लामिक शिक्षा दी जाती है।
संविधान के 86 वे संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21 A को जोड़कर बच्चो को शिक्षा का अधिकार दिया गया।
अनुच्छेद 31 में संपति के अधिकार का वर्णन किया है जिसे 1978 मे मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था।
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
मौलिक अधिकारों का का उल्लंघन होने पर उच्च न्यायालय उनकी रक्षा हेतु 5 याचिका या रिट्ज जारी कर सकता है। इसी कारण इस अनुच्छेद को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है। प्रमुख पांच याचिकाएं निम्नलिखित है-
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण
इसका शाब्दिक अर्थ शरीर सहित उपस्थित करना। किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बना लेने पर उसे छुड़वाने हेतु यह याचिका जारी की जाती है। यह याचिका उस व्यक्ति की सिफारिश पर झारी की जाती है, जो यह मानता है कि उसे बिना अपराध के बंदी बनाया गया है।
2.परमादेश
इसका शाब्दिक अर्थ है आदेश देना। किसी भी संस्था द्वारा अपने निर्धारित कार्यों को न करने पर उस संस्था को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वे कार्य करने के लिए आदेश दिए जाते हैं।
3.प्रतिषेध लेख
इसका शाब्दिक अर्थ है निषेध करना या रोकना। यह आलेख सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा अपने से छोटे न्यायालयों को झारी करते हुए आदेश दिया जाता है, कि इस मामले की कार्यवाही न करें क्योंकि यह उनकी सीमा से बाहर है।
4.उत्प्रेषण लेख
उत्प्रेषण का अर्थ है मांग लेना। उत्प्रेषण निम्नलिखित मामलों में जारी होता है –
- जब किसी न्यायालय में अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया जाता हो।
- सामान्यतः उच्च न्यायालय का मानना है कि इसका प्रयोग विशुद्ध प्रशासनिक मामलों में नहीं किया जाना चाहिए परंतु बाद में वैधानिक एवं प्रशासनिक दोनों मामलों में इसका उपयोग किया जाने लगा।
5. अधिकार पृच्छा
इसके अंतर्गत न्यायालय सार्वजनिक या सरकारी पद धारण करने वाले किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जांच करता है। यदि उस व्यक्ति का दावा सही नहीं होता है, तो न्यायालय द्वारा उसे उस पद से हटा सकता है।
नोट – अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा याचिकाएं जारी होती है। जबकि अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के द्वारा याचिकाएं जारी की जाती है।
मौलिक अधिकारों की आवश्यकता व महत्व
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मौलिक अधिकारों का महत्व |
1. मौलिक अधिकार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करना
मौलिक अधिकारों के द्वारा राज्य के प्रत्येक नागरिक को शारीरिक, मानसिक व नैतिक विकास आदि सुरक्षा प्रदान की जाती है। जिससे उसका अधिकतम सर्वांगीण विकास हो सके।
2. मौलिक अधिकार से शासन की समीक्षा पर रोक
मौलिक अधिकार सरकार पर मनमानी करने पर अंकुश लगाते हैं। भारतीय राजाओं की शक्ति पर ऐसे प्रतिबंध लगाए गए थे, कि वे सत्ता का दुरुपयोग न कर सके। मौलिक अधिकार शासन व विधानमंडल के ऊपर अंकुश लगाने में सक्रियता प्रदान करते हैं। राज्य ऐसी कोई नीति नहीं बना सकता है जिससे मौलिक अधिकारों का हनन हो।
3. मौलिक अधिकार से न्यायिक सुरक्षा
मौलिक अधिकारों के महत्व में एक यह भी बिन्दु हैं। इसके अनुसार मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों एवं समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। तथा उनका विरोध करने पर व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकते हैं।
4. मौलिक अधिकार लोकतंत्र के आधार स्तंभ
मौलिक अधिकार देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करते हैं। यह लोकतंत्र के लिए आधार स्तंभ की भूमिका निभाते हैं। इनके अभाव में लोकतंत्रात्मक शासन की कल्पना नहीं की जा सकती।
5. मौलिक अधिकार समानता के कारक
संविधान द्वारा राष्ट्र के समस्त नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान कर उन सब में समानता स्थापित की गई है। तथा मौलिक अधिकार समानता के आधार पर लोगों को राजनीति एवं प्रशासनिक प्रणाली में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं। तथा अधिकारों के वितरण में किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता।
6. मौलिक अधिकारों के अन्य महत्व
- मौलिक अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षक है।
- यह विधि के शासन की स्थापना करते हैं।
- मौलिक अधिकार भारतीय राज्य की पंथनिरपेक्ष छवि को बल प्रदान करते हैं।
- मौलिक अधिकार व्यक्तिगत सम्मान को बनाए रखना सुनिश्चित करते हैं।
- मौलिक अधिकार सामाजिक समानता एवं न्याय की आवश्यकता बनाए रखते हैं।
मौलिक अधिकारों की विशेषताएं
1. मौलिक अधिकारों में सकारात्मकता व नकारात्मकता का समावेश
कुछ मौलिक अधिकार नकारात्मक विशेषता वाले मौलिक अधिकार है जिनके द्वारा राज्य के प्राधिकार को सीमित किया जा गया है। जबकि कुछ मौलिक अधिकार सकारात्मक विशेषता वाले मौलिक अधिकार है, जिनमें राज्य द्वारा व्यक्ति के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान करने को कहा गया है।
2. मौलिक अधिकार व्यवहारिकता पर आधारित है
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार कोरे सिद्धांत की उपेक्षा वास्तविकता पर आधारित है। और संपूर्ण समाज के लिए उपयोगी है।
उदाहरण के लिए सभी व्यक्तियों हेतु समानता के अधिकार को स्वीकार करते हुए भी पिछड़े और दलित वर्गों के विकास के लिए उनके हितों का प्रबंध किया गया है। और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की व्यवस्था इस दृष्टिकोण से की गई है, कि समाज में धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिल सके।
3. मौलिक अधिकार सीमित है निरंकुश नहीं
संविधान में मौलिक अधिकार सीमित है, लेकिन संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए गए सभी मौलिक अधिकार निरंकुश नहीं है। मौलिक अधिकारों से नागरिकों के साथ होने वाले शोषण भेदभाव पर अंकुश लगाए गए हैं। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि मौलिक अधिकार सीमित जरूर है, लेकिन यह निरंकुशता को बढ़ावा नहीं देते हैं।
4. मौलिक अधिकार स्थाई है
संविधान के मौलिक अधिकार स्थाई न होकर अस्थाई है। अर्थात मौलिक अधिकारों में कमी या वर्दी कर संशोधन किया जा सकता है। लेकिन कोई भी संशोधन मौलिक अधिकारों के विरोध में नहीं होना चाहिए।
जैसे 44 वें संविधान संशोधन के तहत संपत्ति के अधिकार को समाप्त किया गया तथा 86 वा संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा के अधिकार को जोड़ा गया।
5. मौलिक अधिकार वाद योग्य है
मौलिक अधिकार राज्य के विरोध में प्राप्त होते हैं इसलिए यह वाद योग्य हैंयह न्यायोंचित है कि जब भी इनका उल्लंघन होता हो तो यह नागरिकों को न्यायलय जाने की अनुमति देते हैं नागरिकों के शोषण को रोकते हैं
6. मौलिक अधिकारों की रक्षा की व्यवस्था
भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार केवल कागजी प्रतिज्ञाएं नहीं है, बल्कि यह पूर्ण वैधानिक अधिकार है। और संविधान में न्यायालयों को आदेश दिया जाता है कि वे यह पुष्टि या जांच करें कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन ना हो।
मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कोई भी नागरिक संविधान के अनुच्छेद 32 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है
यदि कोई ऐसे कानून बनाए जाते हैं जो मौलिक अधिकारों को अनुचित रूप से प्रतिबंध करते हो तो न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के सभी कानूनों को असंवैधानिक घोषित कर सकती है।
7. मौलिक अधिकार विस्तृत और व्यापक है
भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का व्यापक वर्णन किया गया है जो कि विश्व के दूसरे देशों को मौलिक अधिकारों के वर्णन से काफी विस्तृत तथा बढ़ा है जो भारतीय मौलिक अधिकारों को दूसरे देशो के मौलिक अधिकारों से विशेष बनाते हैं।
8. मौलिक अधिकारों की अन्य विशेषताएं
- राष्ट्रीय आपातकाल की सक्रियता के दौरान अनुच्छेद 20 और 21 के अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है। अनुच्छेद 19 में वर्णित मौलिक अधिकारों को तक स्थगित किया जा सकता है, जब युद्ध या विदेश आक्रमण के आधार पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो इसे सशस्त्र विद्रोह के आधार पर स्थगित नहीं किया जा सकता।
- मौलिक अधिकार लोक कल्याणकारी तथा संविधान में उल्लेखनीय है
- मौलिक अधिकार उपस्थित व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है।
- मौलिक अधिकारों को स्वेच्छा से त्याग नहीं किया जा सकता।
- भारत के संदर्भ में अधिकार और कर्तव्य एक वस्तु के दो चरण है।
- कुछ मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है। जैसे – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- लेकिन कुछ मौलिक अधिकार सभी व्यक्तियों को उपलब्ध प्राप्त है चाहे वह व्यक्ति भारतीय नागरिक हो या ना हो, जैसे – भ्रमण करने की स्वतंत्रता, तथा जीवन जीने का अधिकार।
मौलिक अधिकारों का मूल्यांकन या आलोचना
1. मौलिक अधिकारों की व्यापक सीमाएं
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की सीमाएं व्यापक है। मौलिक अधिकार असंख्य अपवादों, प्रतिबंधों, गुणों एवं व्याख्याओं का विषय है।
मौलिक अधिकारों में इतने प्रतिबंध लगा दिए गए हैं, कि इनके बारे में कहा जाता है कि संविधान द्वारा एक हाथ से मौलिक अधिकार प्रदान किए गए, तथा दूसरे हाथ से संविधान के मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
2. मौलिक अधिकारों में सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों का अभाव
मौलिक अधिकार मुख्यतः राजनीतिक अधिकार है इनमें सामाजिक सुरक्षा काम रोजगार विश्राम सुविधा आदि का अधिकार नहीं है जबकि यह सभी अधिकार उन्नत लोकतांत्रिक देशों में एवं समाजवादी देशों जैसे रूस व चीन के नागरिकों को प्राप्त है।
3. मौलिक अधिकारों में स्पष्टता का अभाव
मौलिक अधिकारों में कई अभिव्यक्तिया जैसे उचित प्रतिबंध, सार्वजनिक हित आदि व्याख्यीत नहीं है, इन्हें समझने हेतु बहुत ही प्रतिष्ठित भाषा का प्रयोग हुआ है। यह भी आरोप लगाया जाता है कि संविधान वकीलों द्वारा वकीलों के लिए बनाया गया है।
4. मौलिक अधिकारों में स्थायित्व का अभाव
मौलिक अधिकारों में स्थायित्व के अभाव को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। संसद जब चाहे मौलिक अधिकारों में कटौती तथा बढ़ोतरी कर सकती है, या समाप्त भी कर सकती है। जैसे संपत्ति का अधिकार।
5. आपातकाल के दौरान स्थगन अनुच्छेद 20 व 21 के अलावा
आपातकाल के समय मूल अधिकारों को स्थगित किया जाना न्यायोचित है, लेकिन शांति काल में भी मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जाना इनके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करती है।
6. मौलिक अधिकारों में निवारक नजरबंदी की व्यवस्था
आलोचकों ने मौलिक अधिकारों की आलोचना करते हुए कहा है कि इस व्यवस्था से संविधान की मूल भावना प्रभावित होती है। यह राज्य को मनमानी शक्ति देता है। किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश में निवारक निरोध को संविधान का आंतरिक भाग नहीं बनाया गया है।
7. मौलिक अधिकारों की अन्य आलोचनाएं
- मौलिक अधिकार देश के नागरिकों को व्यवस्थापिका की निरंकुशता से रक्षा करने में समर्थ नहीं है।
- मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंधों की व्यवस्था संविधान में राष्ट्र व समाज विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए की गई है। लेकिन कई बार इनका प्रयोग राजनीतिक विरोधियों के स्वर को दबाने के लिए भी किया जाता है।
- मौलिक अधिकारों के अंतर्गत भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की जाति व जनजाति के लिए विशेष संरक्षण की व्यवस्था की गई है, किंतु इसका प्रयोग वोटों की राजनीति के लिए हुआ है।
- शोषण के विरुद्ध अधिकार यद्यपि स्त्रियों, बच्चों, गरीब कामगारों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है। किंतु अशिक्षा, बेरोजगारी व गरीबी के कारण इन वर्गों का शोषण व्यवहारिक रूप से नहीं रोका जा सकता।
- अधिकारों को न्यायिक सुरक्षा देने के बावजूद वर्तमान न्यायिक प्रक्रिया लंबी, जटिल व खर्चीली होने से आम नागरिकों के हितों की सुरक्षा सफल नहीं हो पा रही है।
- आलोचकों के अनुसार मूल अधिकारों की व्याख्या उच्चतम न्यायालय को रोकने का अधिकार है, परंतु इनकी स्थिति स्पष्ट ना होने से इन में कठिनाइयां आती है।
मौलिक अधिकारों की प्रमुख मांगे
- भारत में सर्वप्रथम मौलिक अधिकारों की मांग शिवराज विजय 1895 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा की गई।
- 1925 ईस्वी में कॉमन वेल्थ इंडिया विदेश में श्रीमती एनी बेसेंट द्वारा मौलिक अधिकारों की मांग की गई।
- बाद में फिर से 1928 के लाहौर अधिवेशन में नेहरू रिपोर्ट के तहत मोतीलाल नेहरू ने मौलिक अधिकारों की मांग की, तथा 1928 में ही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी मौलिक अधिकारों की मांग की।
- बाद में 1931 में मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव को कराची अधिवेशनके में पास कर दिया गया।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी द्वारा मौलिक अधिकारों की मांग की गई।
- 1934 ईस्वी में ब्रिटिश सरकार की संयुक्त संसदीय समिति ने अब तक की गई मौलिक अधिकारों की सभी मांगों को अस्वीकार कर दिया।
- अंत में परामर्श समिति बनाई गई जिसकी अध्यक्षता सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी। तथा इस समिति की उप समिति बनाई गई, जिसकी अध्यक्षता सुचिता कृपलानी ने की थी इसी समिति की सिफारिश के आधार पर 1945 ईस्वी में मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान में शामिल किए जाने के प्रस्ताव को स्वीकार किया गया।