कक्षा 10 भूगोल अध्याय 6: विनिर्माण उद्योग नोट्स । Class 10 Geography Chapter 6 Notes in Hindi Pdf

Class 10 Geography Chapter 6 Notes: कक्षा 10 के भूगोल के अध्याय 6 विनिर्माण उद्योग में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 भूगोल अध्याय 6: विनिर्माण उद्योग नोट्स (Class 10 Geography Chapter 6 Notes) दिए गए हैं जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए रामबाण साबित होंगे। 

Class 10 Geography Chapter 6 Notes

Class 10 Geography Chapter 6 Notes (कक्षा 10 भूगोल अध्याय 6: विनिर्माण उद्योग नोट्स)

विनिर्माण

मशीनों के माध्यम से बड़ी मात्रा में कच्चे माल से अधिक मूल्यवान वस्तुएं उत्पादित करना विनिर्माण उद्योग कहलाता हैं।

विनिर्माण उद्योग का महत्व

1. विनिर्माण उद्योग कृषि के आधुनिकीकरण में मदद करता है। इससे कृषि पर से निर्भरता कम होती है।

2. विनिर्माण उद्योग से लोगों की आय कमाने के लिए कृषि पर निर्भरता कम होती है।

3. विनिर्माण से प्राथमिक और द्वितीयक सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।

4. यह बेरोजगारी और गरीबी को कम करने में मदद करता है।

5. निर्मित वस्तुओं का निर्यात व्यापार बढ़ाता है, जिससे देश को अपेक्षित विदेशी मुद्रा मिलती है।

6. बड़े पैमाने पर विनिर्माण से देश की संपदा में वृद्धि होती है।

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान

विनिर्माण उद्योग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित योगदान देता है:

1. पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योग का 17 प्रतिशत योगदान हैं। यहाँ तक कि 10 प्रतिशत का योगदान खनिज खनन, गैस और विद्युत ऊर्जा से होता है। 

2. भारत की तुलना में अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35 प्रतिशत होता है। पिछले दस वर्षों में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि हुई है। 

3. इसकी यह दर अगले दसक में 12 प्रतिशत की अपेक्षित है। सन् 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास वार्षिक 9 से 10 प्रतिशत की दर से हुआ है।

विदेशी विनिमय

विदेशी विनिमय से मतलब होता है कि एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने की प्रक्रिया। 

विदेशी मुद्रा

एक देश की सरकार दूसरे देश से वस्तुएँ खरीदती और बेचती है। इसके द्वारा देशों के बीच व्यापार और आर्थिक संबंध बनाए जाते हैं।

उद्योग

वह क्षेत्र का जहां वस्त्र, वस्तुएँ या सेवाएँ बनाई जाती हैं। उद्योग विस्तृत रूप में विनिर्माण की प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें मानवों या मशीनों की सहायता से सामग्री को रूपांतरित करके उत्पाद बनाए जाते हैं। 

उद्योगों की अवस्थिति के भौतिक कारक

उद्योगों की अवस्था के भौतिक कारक में निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

1. अनुकूल जलवायु: यह उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि विभिन्न उद्योगों के लिए अनुकूल जलवायु शरीरिक परिवेश को सुखद और उपयुक्त बनाने में मदद करता है।

2. शक्ति के साधन: शक्ति के साधन उद्योगों के लिए आवश्यक होते हैं, जैसे कि विद्युत, पेट्रोल, डीजल, गैस, या अन्य स्रोत। इन साधनों की उपलब्धता उद्योगों की संचालन क्षमता पर निर्भर करती है।

3. कच्चे माल की उपलब्धता: उद्योगों के लिए कच्चे माल की उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह कच्चा माल उद्योगों में उपयोग होने वाले सामग्री और उत्पादों की आपूर्ति को सुनिश्चित करता है।

उद्योगों की अवस्थिति के मानवीय कारक 

1. श्रम: श्रम उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण होता है। उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों का योगदान उद्योग की अवस्था में महत्वपूर्ण होता है।

2. बाजार: उद्योगों की सफलता बाजार की मांग पर निर्भर करती है। बाजार में उत्पादों की आपूर्ति और मांग के आधार पर उद्योगों की अवस्था तय होती है।

3. परिवहन और संचार: परिवहन और संचार की सुविधाएं उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। इसके लिए परिवहन (जैसे कि रेल, सड़क, हवाई) और संचार (जैसे कि इंटरनेट, टेलीफोन) का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

4. आधारिक संरचना: एक उद्योग की अच्छी आधारिक संरचना उसकी संचालन क्षमता को सुनिश्चित करती है। 

5. उद्यमी: उद्यमी उद्योग की अवस्था को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उद्यमी के विचार, संचालन क्षमता, नवाचार और प्रगतिशीलता उद्योगों को विकासशील और सफल बनाने में मदद करते हैं।

6. पूंजी: पूंजी की उपलब्धता और उद्योगों के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता उनकी विस्तार और विकास की संभावनाओं पर प्रभाव डालती है।

7. सरकारी नीतियां: ऊद्योगों के लिए निर्धारित कर, वित्तीय सहायता प्रदान कर, नियमों का पालन करवाकर और उद्योग संबंधी प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत करके सरकारी नीतियां उद्योग की स्थिति को प्रभावित करती हैं।

उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:-

प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर 

कृषि आधारित उद्योग : कृषि आधारित उद्योग उन उद्योगों को कहते हैं जो कृषि उत्पादों पर आधारित होते हैं। इनमें सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी और वनस्पति तेल उद्योग शामिल हैं।

खनिज आधारित उद्योग: खनिज आधारित उद्योग उन उद्योगों को कहते हैं जो खनिज संसाधनों के प्रयोग पर आधारित होते हैं। इनमें लोहा और इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औज़ार और पेट्रोरसायन उद्योग शामिल हैं।

प्रमुख भूमिका के आधार पर उद्योग

आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनका उत्पादन या कच्चा माल दूसरे उद्योगों के उपयोग के लिए निर्भर करता है। इसमें लोहा और इस्पात, तांबा प्रगलन और एल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग शामिल हैं। 

उपभोक्ता उद्योग: ये वे उद्योग हैं जिनका उत्पादन सीधे  उपभोक्ताओं के उपयोग के लिए किया जाता है और उनमें चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि उद्योग शामिल हैं। ये उद्योग उपभोक्ताओं की सीधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन करते हैं।

पूँजी निवेश के आधार पर उद्योग

लघु उद्योग: लघु उद्योग उन उद्योगों को कहते हैं जिनमें एक करोड़ रुपये तक की पूंजी का निवेश होता है। 

बृहत उद्योग: बृहत उद्योग में एक करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी का निवेश होता है।

स्वामित्व के आधार पर उद्योग

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहते हैं, जो सरकार के स्वामित्व में होते हैं और सरकार उनके प्रत्यक्ष नियंत्रण करती है। इसमें SAIL, BHEL, GAIL जैसी कंपनियां शामिल होती हैं।

निजी क्षेत्र के उद्योग: इनमें ऐसे उद्योग शामिल होते हैं, जिनका स्वामित्व एक व्यक्ति के या एक समूह के पास होता है और वे उनका संचालन करते हैं। इसमें टाटा, बजाज ऑटो लिमिटेड, डाबर उद्योग आदि कंपनियां शामिल होती हैं।

संयुक्त उद्योग: वे उद्योग जिन्हें राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के साझे प्रयास से चलाया जाता है। इसमें ऑयल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल होती हैं।

सहकारी उद्योग: ऐसे उद्योगजिनका स्वामित्व उत्पादकों, श्रमिकों या उन दोनों के हाथ में होता है और जहां लाभ और हानि का विभाजन अनुपातिक होता है। इसमें केरल के नारियल उद्योग और महाराष्ट्र के चीनी उद्योग जैसे उदाहरण शामिल होते हैं।

कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर  

भारी उद्योग: ये उद्योग वह होते हैं जो भारी और बड़े कच्चे माल का इस्तेमाल करते हैं। इनमें लोहा और इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, सीमेंट उद्योग और ऐसे अन्य उद्योग शामिल हैं।

हल्के उद्योग: ये उद्योग वह होते हैं जो कम भार वाले कच्चे माल का इस्तेमाल करके हल्के उत्पादों का निर्माण करते हैं। इसमें विद्युतीय उद्योग शामिल होता है। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 समाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 3: भूमंडलीकृत विश्व का बनना । Class 10 Social Science History Chapter 3 Notes in Hindi Pdf

कृषि आधारित उद्योग

कृषि आधारित उद्योग वह होते हैं जो कृषि उत्पादों को औद्योगिक उत्पाद में परिवर्तित करते हैं। 

इनमें सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी और वनस्पति तेल जैसे उद्योग शामिल होते हैं। ये उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित होते हैं। 

वस्त्र उद्योग

भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है। इसका उद्योगिक उत्पादन महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

यह उद्योग उच्चतम मूल्य वाले उत्पाद तक की श्रृंखला में कच्चे माल से आत्मनिर्भरता के साथ पूरी होता है।

सूती कपड़ा उद्योग

  • 1854 में मुंबई में पहली सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना हुई।
  • महात्मा गांधी ने चरखा काटने और खादी के पहनावे को प्रोत्साहित किया था ताकि बुनकरों को रोजगार मिल सके।
  • शुरुआती दिनों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र और गुजरात के कपास केन्द्रों तक ही सीमित थे।
  • कपास की उपलब्धता, बाजार, परिवहन, नगरों की निकटता, श्रम, शुष्क जलवायु और अन्य कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया।
  • कताई का काम महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में होता है, लेकिन सूती, रेशम, जी, कशीदाकारी आदि में बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई कारोबार बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।

भारत में सूती वस्त्र उद्योग के सामने समस्याएँ

• पुरानी और परंपरागत तकनीक के कारण लंबे रेशे वाली कपास की उत्पादन कम होती है।

• नई मशीनरी की कमी के कारण समस्या होती है।

• कृत्रिम वस्त्र उद्योग के साथ प्रतिस्पर्धा होती है। 

• अनियमित बिजली की आपूर्ति भी दिक्कत पैदा करती है।

कपास उद्योग की प्रमुख समस्याएं

  • बिजली की आपूर्ति अनियमित होना एक समस्या है।
  • उच्चतर क्षमता वाली मशीनरी की आवश्यकता होती है।
  • श्रम की कमी हो रही है।
  • सिंथेटिक फाइबर उद्योग में कठोर प्रतिस्पर्धा होती है।

पटसन (जुट) उद्योग

भारत में पटसन उद्योग सबसे अधिकांशतः हुगली नदी के तट पर स्थित है। यहां पटसन बनाने और निर्माण करने का काम सबसे अधिक होता है। बांगलादेश देश भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पटसन निर्यातक है।

भारत में अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं?

भारत में जूट के उद्योग का मुख्य केंद्र पश्चिम बंगाल में है। यहां पश्चिम बंगाल राज्य में अधिकांशतः जूट मिलें स्थित हैं। इसके पीछे कुछ कारण हैं:

  • पटसन उद्योग के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है और हुगली नदी से पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है।
  • पश्चिम बंगाल राज्य के पास पड़ोसी राज्यों में सस्ते मजदूर भी मिल जाते हैं जैसे कि बिहार और उड़ीसा। इसलिए, कामगारों की आपूर्ति बनी रहती है।
  • पटसन के उत्पादों को निर्यात करने के लिए कोलकाता बंदरगाह महत्वपूर्ण है। यहां से उत्पादों को अन्य देशों में भेजा जाता है।
  • इसके अलावा, कच्चे माल को सुविधाजनक तरीके से इस्तेमाल करने के लिए रेलवे, रोडवेज और जल परिवहन के साथ-साथ उपयोग किया जाता है। ये सभी परिवहन साधन उत्पादों को विभिन्न स्थानों तक पहुंचाने में मदद करते हैं।
  • कोलकाता एक बड़ा शहर होने के कारण वहां बैंकिंग और बीमा जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इससे उद्योग को और व्यापार को मजबूती मिलती है।

भारत के जूट उद्योग के समक्ष चुनौतियां

  • अब लोग कृत्रिम रेशों से चीजें बना रहे हैं।
  • कृत्रिम रेशों से बनी चीजें बहुत सस्ती होती हैं।
  • जूट की खेती करने में बहुत खर्च होता है।
  • विदेशी बाजार के साथ मुकाबला करना बाजार में एक चुनौती है।
  • बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय बाजार में चुनौती के रूप में खड़ा है।

चीनी उद्योग

  • भारत देश में चीनी का उत्पादन विश्व में दूसरे स्थान पर है। इसके अलावा, गुड़ और खांडसारी के उत्पादन में भारत देश पहले स्थान पर है।
  • चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश राज्यों में पायी जाती हैं।
  • पिछले कुछ वर्षों से यह मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर में बढ़ी है।
  • दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में चीनी की बढ़ी मिलों के कारण गन्ने में सूक्रोस की अत्यधिक मात्रा होती है।
  • इसके पीछे की वजह ठंडी जलवायु भी है।
  • सहकारी समितियाँ इसमें अधिक सफलता प्राप्त कर रही हैं।

भारत में चीनी उद्योग के सम्मुख चुनौतियाँ

  • यह उद्योग मौसम की प्रकृति पर आधारित होता है और इसकी अवधि छोटी होती है। 
  • गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टेयर कम होता है। 
  • पुरानी मशीनों का उपयोग होता है। 
  • खोर्ड का अधिकतम इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। 
  • गन्ने को समय पर कारखानों में पहुँचने में परिवहन साधनों की अक्षमता के कारण समस्या हो सकती है।

खनिज आधारित उद्योग

खनिज आधारित उद्योग वे उद्योग हैं जो खनिज और धातुओं का उपयोग करके काम करते हैं। इसके एक उदाहरण के रूप में लौह और इस्पात उद्योग हैं। 

लौह और इस्पात उद्योग 

  • ये उद्योग बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे बनी हुई मशीनरी सभी अन्य उद्योगों के लिए आवश्यक होती है।
  • लौह और इस्पात उद्योग के लिए लौह अयस्क (खनिज धातु), कोकिंग कोल (एक प्रकार का खनिज) और चूना पत्थर (एक प्रकार का पत्थर) का उपयोग होता है। 
  • इनके अनुपात के आधार पर लौह अयस्क:कोकिंग कोल:चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 होता है।
  • 2016 में, भारत में 956 लाख टन इस्पात उत्पादन हुआ था और यह विश्व में कच्चे इस्पात के उत्पादकों के लिए तीसरे स्थान पर था। स्पंज लौह इस्पात का निर्माण करने वाला यह उद्योग सबसे बड़ा है।
  • लौह और इस्पात को सरकारी उपक्रम इंडिया स्टील अथॉरिटी के माध्यम से बेचा जाता है। भारत के छोटा नागपूर के पठारी क्षेत्र में लौह और इस

भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग पूर्ण विकास न हो पाने के कारण

• कोक कोल की खर्ची बहुत ज्यादा होती है और इसकी संख्या में परेशानी होती है।

• श्रम की उत्पादकता कम होती है। लोग ज्यादा काम नहीं कर पाते।

• ऊर्जा की आपूर्ति अनियमित होती है। कभी ज्यादा ऊर्जा होती है, तो कभी कम।

• इसकी मूल ढांचा दुर्बल होती है। इसलिए इसमें समस्याएं हो सकती हैं।

लोहा और इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहे जाने के कारण

• कई अन्य उद्योग लोहे और इस्पात उद्योग पर निर्भर होते हैं।

• लोहा और इस्पात उद्योग अन्य उद्योगों जैसे चीनी या सीमेंट उद्योग को मशीनों की मदद से काम करने में सहायता प्रदान करते हैं।

• देश की औद्योगिक प्रगति इन उद्योगों पर निर्भर करती है।

• ये उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।

लोहा और इस्पात उद्योग को भारी उद्योग कहे जाने के कारण

 लौह, अयस्क, कोयला और चूना जैसे सभी प्राकृतिक धातुओं का वजन होता है।

इस उद्योग के उत्पादों को ट्रांसपोर्ट करने के लिए अधिक खर्च की आवश्यकता होती है।

एल्यूमिनियम प्रगलन

  • भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सबसे महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है।
  • यह हल्का, जंग रोकने वाला, ताप के अच्छा संचारक, सुवाह्य और अन्य धातुओं के मिश्रण से ज्यादा कठोर बनाया जा सकता है।
  • भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्यों में स्थित है।
  • इस उद्योग की स्थापना के लिए दो महत्वपूर्ण आवश्यकताएं हैं:-  नियमित ऊर्जा की आपूर्ति, कम कीमत पर प्राकृतिक धातु की उपलब्धता। 

रसायन उद्योग

  • भारत में सकल घरेलू उत्पादों में रसायनिक पदार्थों का महत्वपूर्ण योगदान है। 
  • उद्योग के अनुमानित 3 प्रतिशत हिस्सेदारी से भारत एशिया में तीसरे सबसे बड़े और विश्व में 12वें स्थान पर है।
  • भारत में दो प्रकार की रसायनिक पदार्थों का उत्पादन होता है। पहले हैं कार्बनिक रसायनिक पदार्थ, जिनमें पेट्रोलियम आधारित रसायनिक पदार्थ शामिल होते हैं। 
  • ये पदार्थ कृत्रिम वस्त्र, रबर, प्लास्टिक, दवाएं और अन्य उत्पादों के निर्माण में उपयोग होते हैं।
  • दूसरे हैं अकार्बनिक रसायनिक पदार्थ, जिनमें सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, क्षार और अन्य पदार्थ शामिल होते हैं।

उर्वरक उद्योग

  • उर्वरक उद्योग में मुख्य रूप से नाइट्रोजनी उर्वरक (जैसे यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक और अमोनिया फास्फेट का उत्पादन और इस्तेमाल होता है।
  • हमारे देश में पोटेशियम यौगिकों के स्थानीय संसाधन बहुत कम हैं। इसलिए हम पोटाश उर्वरक को विदेशों से आयात करते हैं।
  • हरित क्रांति के बाद, यह उद्योग देश के कई भागों में विस्तार पाया है। 

सीमेंट उद्योग

  • सीमेंट उद्योग वह उद्योग है जिसमें भारी और स्थूल कच्चे मालों की आवश्यकता होती है, जैसे कि चूना पत्थर, सिलिका और जिप्सम। 
  • इसका उपयोग मुख्य रूप से निर्माण कार्यों में होता है। रेल परिवहन, कोयला और विद्युत इसके लिए आवश्यक होते हैं।
  • यह उद्योग गुजरात में लगाया गया है क्योंकि यहाँ से खाड़ी के देशों में व्यापार की सुविधा होती है।
  • सीमेंट उद्योग का विकास हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भवनों, फैक्टरियों, सड़कों, पुलों, बांधों, घाटों और अन्य ढांचा-निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक है। 
  • हमारा सीमेंट उद्योग उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला सीमेंट उत्पादित करता है। इसकी मांग अफ्रीका के देशों में भी होती है।

मोटरगाड़ी उद्योग

  • मोटरसाइकिल यात्रियों और सामान को तेज़ी से पहुंचाने का एक साधन है।
  • उदारीकरण के बाद, नए और आधुनिक मॉडल की वाहनों की खरीदारी बढ़ गई है।
  • यह उद्योग दिल्ली, गुड़गांव, मुंबई, पुणे, चेन्नई और अन्य शहरों के आसपास स्थापित है।
  • भारत में उदारीकरण और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण मोटरसाइकिल उद्योग में बहुत तेज़ी से विकास हुआ है।
  • उदारीकरण के बाद, नए और आधुनिक मॉडल की वाहनों की माँग बढ़ी है। कार, स्कूटर, स्कूटी, बाइक, और ऑटोरिक्शा की संख्या भी बढ़ गई है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ नई तकनीक के उपयोग से यह उद्योग वैश्विक स्तर पर पहुंच गया है।
  • वर्तमान में 15 इकाइयाँ मोटरसाइकिल बना रही हैं, और 14 इकाइयाँ स्कूटर, मोटरसाइकिल, और ऑटोरिक्शा निर्माण कर रही हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग

इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में बहुत सारे उत्पाद बनाए जाते हैं, जैसे कि ट्रांजिस्टर, टेलीविजन, टेलीफोन एक्सचेंज, रेडार, कंप्यूटर और दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी उपकरण।

भारत की इलेक्ट्रॉनिक राजधानी के रूप में बेंगलोर का विकास हुआ है। भारत में सूचना और प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने के कारण हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हुआ है।

भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का आर्थिक विकास में योगदान 

  • रोज़गार बढ़ रहा है और लोगों को रोज़ी-रोटी मिल रही है।
  • विदेशों से मुद्रा प्राप्त करके लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं।
  • कार्यरत महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, यानी अब अधिक महिलाएं काम कर रही हैं।
  • हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का विकास निरंतर हो रहा है।
  • सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क विशेषज्ञों के लिए एकल विंडो सेवा और उच्च गति वाली संचार सुविधाएं प्रदान करता है।

प्रदूषण के प्रकार

  • तापीय प्रदूषण
  • जल प्रदूषण
  • ध्वनि प्रदूषण
  • वायु प्रदूषण
  • वायु प्रदूषण

उद्योगों द्वारा सल्फर डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।

रासायनिक और पेपर उद्योग, ईंट भट्टे और रिफाइनरी से धुआं निकलता है।

जल प्रदूषण

औद्योगिक कचरे (जैसे कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ) से प्रदूषण होता है।

पेपर, रासायनिक, वस्त्र उद्योग और अन्य उद्योगों से प्रदूषण होता है।

तापीय प्रदूषण

कारखानों और उष्मीय संयंत्रों से गर्म जल नदी में छोड़ा जाता है।

परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्र भी बड़े तापीय प्रदूषण के स्रोत हैं।

ध्वनि प्रदूषण

इससे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।

इससे हृदय की गति और रक्तचाप बढ़ जाते हैं।

उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपाय

  • अप्रदूषित जल को नदियों में छोड़ने की बजाय इसे साफ करके बहना चाहिए।
  • हमें जल के साफ करने और उपयोग करने के लिए जलविद्युत का उपयोग करना चाहिए।
  • इसके अलावा, हमें ध्वनि को कम करने वाली उन मशीनों का उपयोग करना चाहिए जो कम शोर करती हैं।

भारत में पर्यटन के बढ़ते महत्त्व

तृतीयक क्षेत्र का उद्योग विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। यह उद्योग 2500 लाख नौकरियाँ प्रदान करता है। इसका राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत है। इसके माध्यम से उद्योगों और व्यापार में वृद्धि होती है। यह उद्योग देश के मूलभूत ढांचे को सुधारने में मददगार होता है। इसके साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय बंधुता को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। हाल के वर्षों में पर्यटन उद्योग में कई नए स्वरूप जैसे मेडिकल टूरिज्म आदि का भी विकास हुआ है।

Leave a Comment